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लाक्षागृह, लाख से बना एक भवन था। इसे कौरवों ने पांडवों को मारने के लिए बनवाया था। दुर्योधन ने इस भवन में पांडवों को ठहराया और उनकी योजना थी कि जब वे इस भवन में सो जाएंगे, तो उसमें आग लगाकर उन्हें मार दिया जाएगा।

हालांकि, पांडवों को इस साजिश के बारे में पता चल गया और वो गुप्त सुरंग से बाहर निकल गए। कौरवों ने लाक्षागृह में आग लगा दी और ये जलकर खाक हो गया था। इसके बाद दुर्योधन और धृतराष्ट्र समेत सभी कौरवों ने शोक मनाने का दिखावा किया और पांडवों की अंत्येष्टि करवा दी।

इसके बाद पांडव लाक्षागृह कांड से अपनी जान बचाकर एक नगर में छिपकर रहने लगे। यह एकचक्रा नगर था, यहाँ के लोग नरभक्षी राक्षस बकासुर के आतंक से बेहद ही अधिक पीड़ित थे।

बकासुर को मनुष्यों का मांस खाना पसंद था और वह नगर में आकर हाहाकार मचाता रहता था। नगर के लोगों ने उस से बेहद विनती की कि वह नगर में आ कर हाहाकार ना मचाए। प्रतिदिन नगर 1 निवासी बारी-बारी उसका भोजन लेकर उसके पास आएगा। वह उस व्यक्ति को भी मार कर खा लेगा।

उसे रोजाना 20 खारी अगहनी के चावल, पकवान, 2 बैल और एक मनुष्य भोजन के रूप में भेजा जाता था, जिसे वह खा लेता था।

पांडव भी यहाँ अपनी मां कुंती के साथ एक ब्राह्मण के घर में रह रहे थे। जब बलि देने की बारी ब्राह्मण के घर की आई तो सभी घबरा गए और ये डिसाइड नहीं कर पा रहे थे कि बकासुर के पास कौन जाएगा। लेकिन कुंती ने मन ही मन योजना बनाई।

इसके बाद उन्होंने अपने बलशाली पुत्र भीम को राक्षस के पास भेजा, लेकिन वो राक्षस का सारा खाना खुद खा गए। जब राक्षस ने भीम को देखा कि वह उसका भोजन खा रहा है तो राक्षस ने उन पर हमला कर दिया और भीम ने उसका वध कर दिया।

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