भारत में मायोपिया रोग और मायोपिक बच्चों की संख्या लगातार बढ़ रही है। इस बढ़ती संख्या के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए राष्ट्रीय मायोपिया सप्ताह मनाया जा रहा है। मायोपिया के कारण हर साल लाखों बच्चे दृष्टि खो देते हैं। बच्चों में मायोपिया किशोरावस्था के दौरान मोतियाबिंद, ग्लूकोमा, रेटिनल डिटेचमेंट, मायोपिक मैकुलोपैथी और मायोपिक स्ट्रैबिस्मस फिक्सस का कारण बन सकता है।



हाल ही में हुए एक सर्वेक्षण में पाया गया कि भारत में स्कूल जाने वाले लगभग 13 प्रतिशत बच्चे मायोपिक हैं। इसके पीछे मुख्य कारण पिछले एक दशक के दौरान इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स के अत्यधिक उपयोग को माना जा रहा है। पिछले दो सालों में बच्चों का स्क्रीन टाइम बढ़ा है। 17 वर्ष तक के बच्चों में वीडियो गेम खेलने और इनडोर गतिविधियों में वृद्धि हुई है।

ईएनटीओडी फार्मास्युटिकल्स ने ईएनटीओडी हेल्थ फाउंडेशन और स्ट्रैबिस्मस एंड पीडियाट्रिक ऑप्थल्मोलॉजिकल सोसाइटी ऑफ इंडिया के सहयोग से देश भर के कई शहरों में 14 नवंबर से 20 नवंबर तक मायोपिया जागरूकता सप्ताह का आयोजन किया। इसके तहत बच्चों में मायोपिया बीमारी के बारे में जागरुकता लाई जाएगी। यह पहला राष्ट्रव्यापी मायोपिया अभियान है।


स्ट्रैबिस्मस एंड पीडियाट्रिक ऑप्थल्मोलॉजी सोसाइटी ऑफ इंडिया के सचिव डॉ. पी.के. पांडे ने कहा कि एशियाई क्षेत्रों में मायोपिया के मामले बढ़ रहे हैं। भारत में मायोपिया के मामले प्रति दशक लगभग 8 प्रतिशत की दर से बढ़ रहे हैं और वर्ष 2050 तक लगभग आधी आबादी इससे पीड़ित हो सकती है।

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