आज तक स्त्रियों से कोई भला बच पाया है। कई बड़े बड़े ऋषि मुनियों की तपस्या भी स्त्रियों के चक्कर में भंग हुई है। ऐसा ही नारद मुनि के साथ भी हुआ। वे अपने आपको ब्रह्मचारी कहते थे। लेकिन एक बार ऐसा हुआ जिसके कारण नारद खुद भी अपने आपको नहीं रोक पाए और काम वासना से हैरान हो गए।

दरअसल नारद को इस बात का घमंड था कि उन्होंने अपनी काम वासना पर पूरी तरह से काबू पा लिया है कि कोई स्त्री उनकी काम वासना को जगा नहीं सकती है।

तो आज हम आपको एक ऐसी ही कहानी बताने जा रहे हैं। आइए जानते हैं इस बारे में।

एक बार ब्रह्मा जी ने नारद मुनि को बोला कि उन्हें विवाह कर लेना चाहिए। क्योकिं विवाह किसी भी मनुष्य की सबसे बड़ी जरूरत होती है इस बात का उत्तर देते हुए नारद जी ने कहा कि मैं तो ब्रह्मचारी हूँ और मैं शादी नहीं करूगां और जीवन भर कुंवारा रहूंगा।

तब ब्रह्मा जी को उनकी इस बात से क्रोध आ गया और उन्होंने नारद को श्राप दिया कि तुम्हारा सारा ज्ञान खत्म हो जायेगा और तुम गंधर्व को प्राप्त करोगे।

उन्होंने नारद को कहा कि तू हमेशा कई स्रियों से घिरा रहेगा और तुझे न थमने वाला यौवन प्राप्त होगा। जिस से तू सभी गंधर्वों में सबसे श्रेष्ट गंधर्व बनेगा। फिर सालों तक वन में अपनी कई पत्नियों के साथ विहार कर के अगले जन्म में तू दासी का पुत्र बनेगा।

इसके बाद नारद को फिर लगने लगा था कि वह ब्रह्मचारी हैं और काम वासना से मुक्त हैं। तब विष्णु जी ने उनकी काम वासना की परीक्षा लेने की सोची।

विष्णु जी ने अपनी माया से झूठ से सब बनाया और एक बड़ा साम्राज्य भी बनाया। उन्होंने देवी लक्ष्मी जी को यहाँ की राजकुमारी बनाया। इसके बाद ये ऐलान किया गया कि राजा की बेटी का स्वयंवर होने वाला है।

जब नारद मुनि ने इतनी सुंदर राजकुमारी को देखा तो वे भी काम वासना में आ गए और अपना ब्रह्मचर्य पालन भी भूल गए। वे किसी भी हाल में इस स्त्री को पाना चाहते थे।

अब नारद जी विष्णु के पास गये और उन्होंने कहा कि उन्हें एक सुंदर सा चेहरा दे या हरि का चेहरा दे दे, जिसे देख कर राजकुमारी मोहित हो जाए क्योकिं वे विवाह करने जा रहे हैं लेकिन जब नारद स्वयंवर में पहुचें तो महारानी ने नारद को देखा तक नहीं और माला एक गरीब इंसान को डाल दी थी। ये गरीब कोई और नहीं बल्कि विष्णु थे ,

अब नारद जी पूरी तरह से टूट गये थे कि पहली बार किसी से प्यार हुआ था और उसका अंजाम भी यह हुआ.

नारद यही सोचते-विचारते जा रहे थे तभी वे एक नदी के किनारे बैठ गए और सोचने लगे। जब उनकी नजर नदी में अपने प्रतिबिंब पर पड़ी तो नारद हैरान रह जाते हैं कि विष्णु ने उनको वानर रूप दिया है। असल में हरि का अर्थ वानर भी होता है।

फिर नारद ने दिया विष्णु को श्राप

इस बात से नाराज नारद ने विष्णु को श्राप दिया कि आप मनुष्य के रूप में धरती पर जाओगे और जिस तरह मैं स्त्री के लिए तड़पा हूँ उसी तरह आप भी तड़पोगे।

इसलिए कहा जाता है कि भगवान राम और सीता के बीच, जो वियोग हुआ था, वह इसी श्राप की वजह से हुआ था।

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