ईश्वर की बनाई हुई हर एक वस्तु का वास्तु के साथ गहरा रिश्ता है। फिर चाहे वह वस्तु कोई निर्जीव पदार्थ हो या फिर जीता-जागता इंसान।लेकिन हर एक चीज का ईश्वर के साथ ख़ास रिश्ता होता है। क्योंकि प्रत्येक चीज को ईश्वर ने बड़े ही सोच समझ कर बनाया है। वह चीज कही ना कहीं इंसान के लिए बहुत महत्व रखती है।

लेकिन प्रकृति के नियम के अनुसार जो चीज बनती है, उसे कभी ना कभी मिटना भी होता है। फिर चाहे वह कोई धातु की चीज हो या फिर इंसान का हाड-मांस का शरीर, लेकिन हर एक चीज का एक निश्चित अंत जरूर होता है अतः आस्था की भाषा में कहे तो हर एक वस्तु का अंत खुद ईश्वर ने तय कर रखा होता है।

आज हम बात करने वाले हैं, इंसानी शरीर के म्रत्यु की। वैसे तो विज्ञान ने प्रूव कर रखा है कि म्रत्यु कोई बड़ी बात नहीं है अथवा सिर्फ एनर्जी कन्वर्शन से ज्यादा कुछ नहीं है। लेकिन किसी भी धर्म में मौत से पहले खूब डराया धमकाया जाता है जैसे मरने के बाद ये होता है, वो होता है, इत्यादि। इसलिए अगर जो लोग आध्यात्म में ज्यादा दिलचस्पी रखते हैं तो उनके मन में हमेशा स्वर्ग और नरक नाम का फोबिया रहता है।

लेकिन आज हम आपको बताने वाले है म्रत्यु से जुड़े रोचक तथ्य।

  • आपको बता दें कि एक रिपोर्ट के अनुसारअधिकतर म्रत्यु सुबह के 3 से 4 बीच होती है, लेकिन आपने कभी सोचा है कि आखिर ऐसा क्यों होता है,? इसका जवाब हमारे पास है, ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि सुबह के तीन से चार बजे के बीच शरीर सबसे ज्यादा कमज़ोर होता है और इस कारण डेथ भी सबसे ज्यादा इसी समय होती है।
  • इसके अलावा मौत से जुड़े कुछ फैक्ट के बारे में बात की जाए तो आपको बता दें कि प्रथम विश्व युद्ध के दौरान 4 करोड़ तो वही दुसरे विश्व युद्ध के दौरान 6 करोड़ लोग मारे गए थे।
  • किसी भी शव में उपस्थित जीवाणुओं की प्रजातियाँ देखकर पता लगाया जा सकता है कि आखिर शव कितने दिन पुराना है। क्योंकि मौत के बाद हमारे पेट में पाए जाने वाले एन्जाइम्स (जो भोजन को पचाने का काम करते हैं) वो ही शरीर को अन्दर से खाने का काम करने लगते हैं।
  • मरने के बाद किसी भी शरीर में दुसरे अंगों की तुलना में कान सबसे अंत में ख़राब होते हैं, यानी सुनने की क्षमता सबसे अंत तक रहती है।
  • ये है म्रत्यु से जुड़े रोचक तथ्य – अतः यह सब फैक्ट म्रत्यु के बारे में जो कुछ भी बताते है, उनसे सिर्फ यही निष्कर्ष निकल कर आता है कि इंसानी शरीर वास्तविकता में कोई ख़ास जगह नहीं रखता बल्कि रखती है तो उसकी आत्मा। जिसका विकास करने के लिए अक्सर हम मैडिटेशन का सहारा लेते हैं।

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