Makar Sankranti: मकर संक्रांति पर खिचड़ी खाने के पीछे क्या है रहस्य जानिए
मकर संक्रांति पर खिचड़ी खाने के पीछे क्या है मान्यता, पढ़कर अचरज होगा, लेकिन आपको जानना भी जरुरी है। मकर संक्रांति के दिन अलग-अलग पकवानों के साथ खिचड़ी बनाने और खाने का खास महत्व होता है, इसी कारण इस पर्व को कई जगहों पर खिचड़ी का पर्व भी कहा जाता है। दरअसल, चावल को चंद्रमा का प्रतीक माना जाता है और उरद की दाल को शनि का., हरी सब्जियां बुध से संबंध रखती हैं। मान्यता है कि खिचड़ी की गर्मी मंगल और सूर्य से जुड़ी है., इसलिए मकर संक्रांति के दिन खिचड़ी खाने से राशि में ग्रहों की स्थिति मजबूत होती है। कहा जाता है कि इस दिन नए अन्न की खिचड़ी खाने से पूरे साल आरोग्य मिलता है।
मकर संक्रांति के दिन खिचड़ी खाने की ऐसी भी मान्यता है कि खिलजी के आक्रमण के दौरान बाबा गोरखनाथ के योगी खाना नहीं बना पाते थे और भूखे रहने की वजह से हर ढलते दिन के साथ कमजोर हो रहे थे, योगियों की बिगड़ती हालत को देखते हुए बाबा ने अपने योगियों को चावल, दाल और सब्जियों को मिलाकर पकाने की सलाह दी।
यह भोजन कम समय में तैयार हो जाता था और इससे योगियों को ऊर्जा भी मिलती थी,बाबा गोरखनाथ ने इस दाल, चावल और सब्जी से बने भोजन को खिचड़ी का नाम दिया। यही कारण है कि आज भी मकर संक्रांति के पर्व पर गोरखपुर में स्थित बाबा गोरखनाथ के मंदिर के पास खिचड़ी का मेला लगता है। इस दौरान बाबा को खासतौर पर खिचड़ी को भोग लगाया जाता है।