श्रीकृष्ण के हाथों मारा गया था धर्नुधर एकलव्य, जानिए क्या थी इसकी असली वजह?
महाभारत में धनुर्धर योद्धाओं के रूप में कर्ण, अर्जुन और एकलव्य का नाम आता है। बता दें कि पारंगत धर्नुधर भीलपुत्र एकलव्य को भी कभी-कभी याद किया जाता है। गुरू द्रोणाचार्य द्वारा एकलव्य से अंगूठा मांगने की कथा से सभी वाकिफ हैं, लेकिन भगवान श्रीकृष्ण ने एकलव्य का वध क्यों किया इस बात को बहुत कम लोग जानते हैं। आइए जानते हैं पूरा मामला।
महाकाव्य महाभारत में वनवासी भील राजा निषादराज हिरण्यधनु के दत्तक पुत्र एकलव्य का प्रसंग मिलता है। महाभारत काल में प्रयाग (इलाहाबाद) के तटवर्ती प्रदेश श्रृंगवेरपुर से ताल्लुक रखते थे। निषादराज हिरण्यधनु स्वयं अपने पुत्र एकलव्य को लेकर गुरु द्रोण के पास गए थे। लेकिन गुरु द्रोण ने एकलव्य को शिक्षा देने से मना कर दिया था। इसके पीछे असली वजह यह थी कि वह भीष्म पितामह को यह वचन पहले ही दे चुके थे, वे कौरवों और पांडव राजकुमारों के अलावा किसी को शिक्षा नहीं देंगे। इसके अलावा गुरू द्रोण अपने प्रिय शिष्य अर्जुन से भी यह बात कह चुके थे कि तुमसे बड़ा धर्नुधर दूसरा कोई नहीं होगा।
एकलव्य ने जंगल में गुरु द्रोण की मूर्ति स्थापित कर उन्हें गुरू मानकर अभ्यास करने लगा। देखते ही देखते वो भी एक महान धर्नुधर बन गया। एक बार उसी रास्ते से द्रोणाचार्य अपने शिष्यों सहित कहीं जा रहे थे, तभी उनके पीछे-पीछे एक कुत्ता भी आ रहा था। वहीं दूसरी तरफ एकलव्य अभ्यास कर रहा था। वह कुत्ता एकलव्य के पास जाकर भौंकने लगा। अभ्यास में हो रहे व्यवधान से बचने के लिए एकलव्य ने कुत्ते का मुंह बाणों से भर दिया। हैरान की बात कुत्ते के मुंह से रक्त की एक बूंद तक नहीं निकली। यह देखकर गुरु द्रोण भी हैरान थे।
जब गुरु द्रोण एकलव्य के पास पहुंचे तो उन्होंने देखा कि एकलव्य उनकी मूर्ति बनाकर धर्नुविद्या का अभ्यास कर रहा था। एकलव्य ने द्रोण को प्रणाम किया तथा उसने कहा कि वह उन्हें गुरू मानकर धनुर्विद्या सीखी है। गुरु द्रोण ने एकलव्य से गुरु दक्षिणा में अंगूठा मांग लिया। विष्णु पुराण के मुताबिक, निषादराज हिरण्यधनु की मौत के बाद एकलव्य श्रृंगवेरपुर का राजा बना। इसके अलावा उसने अपने साम्राज्य को विस्तार देने के लिए जरासंध से जा मिला।
जरासंध की सेना की तरफ से युद्ध करके उसने मथुरा पर आक्रमण करके यादव सेना को अपार क्षति पहुंचाई थी। युद्ध महज चार अंगुलियों के सहारे धनुष-बाण चलाते हुए एकलव्य को देखकर श्रीकृष्ण यह समझ गए कि महाभारत युद्ध में यह पांडवों और उनकी सेना के लिए खतरनाक साबित हो सकता है। इसके बाद श्रीकृष्ण ने सुदर्शन चक्र से एकलव्य का वध कर दिया। एकलव्य की मृत्यु के बाद उसका पुत्र केतुमान राजा बना। उसने कौरवों की तरफ से महाभारत युद्ध में भाग लिया था। इस युद्ध में वह भीम के हाथों मारा गया।