अर्ध कुंभ : इस अखाडे के संत कान में पहनते है नथ और कुंडल
प्रयागराज (इलाहबाद ) में अर्ध कुंभ का मेला 15 जनवरी से शुरू हो गया है। अर्ध कुंभ के इस मेले में लाखों - करोड़ो श्रद्धालु के शामिल होने की संभावना है। इसके लिए प्रयागराज की सरकार ने ज़बरदस्त व्यवस्था भी की है। बता दे की कुंभ के इस मेले का समापन महाशिवरात्रि पर हो जाएगा। खास बात यह है कि
इस मेले में 13 अखाड़ों के लाखों साधु-संत शामिल हो रहे है। संन्यासी परंपरा के अंतर्गत इस बार 13 अखाड़ों को ही मान्यता मिली है। लेकिन आपको बता दे कि इसमें एक अखाड़ा ऐसा भी है जो अपने आप में अलग और अनूठा है। इस अखाड़े के साधु - संत साधारण साधुओं से थोड़े अलग है। ये संत दीक्षा से नहीं बल्कि दान से बनते है। शैव संप्रदाय के अखाड़े 'जूना, निरंजनी, महानिर्वाणी, आनंद, अटल, आवाहन और अग्नि से
इन्हें शिष्य दान में मिलते है और वहीं गोदड़ अखाड़े की परंपरा को आगे बढ़ाते है।
इनकी पहचान है कान के कुंडल और नथ -
इस अखाड़े की पहचान कान के कुंडल और नथ से की जाती है। अखाड़े में शामिल होते ही संत को दाएं कान में हिंगलाज माता की नथ और बाएं कान में भगवान शिव का कुंडल पहनाया जाता है। खास बात यह है कि ये नथ व कुंडल दोनों सोनें के बनें होते है। जिस संत के गुरु जीवित होते है वह सोने के आभूषण नहीं पहन सकता। सोने की नथ व कुंडल कान में होने का अर्थ है कि उस संत के गुरु की मृत्यु पहले हो गयी है।
संतों के अंतिम संस्कार में खास भूमिका
इस अखाड़े के गुरु ब्रह्मपुरी महाराज है। इन्होंने ही सबसे पहले इस अखाड़े की नीव रखी। यह अखाड़ा शैव संप्रदाय के अखाड़ों से संबंधित अखाडा है। इस गोदड़ अखाड़े के संत मृतक साधुओं को समाधि बना देते है। संतों के अंतिम संस्कार में इस अखाड़े की खास भूमिका होती है।
प्रणाम करने का तरीका है अलग
इस अखाड़े के साधु - संत अपने गुरु को विशेष तरीके से प्रणाम करते है। वे पहले अपने गुरु के चरणों में बैठकर कुछ विशेष मंत्र बोलते है। उसके बाद अपने दोनों हाथों की उंगलियों से एक विशेष स्थिति गुरु के सामने झुक कर उन्हें प्रणाम करते है। गोदड़ अखाड़े लोग अपने गुरु ब्रह्मपुरी जी महाराज की चरण पादुका की ही पूजा करते है। इस अखाड़े का केंद्र गुजरात के जूनागढ़ में है।