श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा था मैं ऋतुओं में वसंत हूं, ऐसा क्यों कहा था?
भगवान श्रीकृष्ण से जब अर्जुन ने पूछा कि मैं आपको कहां खोजूं? कहां आपके दर्शन होंगे? तब श्रीकृष्ण कहते हैं कि अगर मुझे स्त्रियों में खोजना हो तो तू कीर्ति में, श्री में, वाक् में, स्मृति में, मेधा में, धृति में और क्षमा में देख लेना। मैं गायन करने योग्य श्रुतियों में बृहत्साम, छंदों में गायत्री छंद, महीनों में मार्गशीर्ष तथा ऋतुओं में वसंत ऋतु हूं। अब जब बात वसंत ऋतु की आती है, तो बरबस ही चारो तरफ हरियाली और खिले हुए फूलों से लदे उत्सव का क्षण है यह मौसम।
वसंत ऋतु में प्रकृति का कण-कण आनंद और उल्लास से गा उठता है। मौसम भी अंगड़ाई लेता हुआ अपनी चाल बदलकर मद मस्त हो जाता है। प्रेमी-प्रेमिकाओं का दिल धड़कने लगता है। आपको बता दें कि कामदेव का दूसरा नाम मदन है। इसलिए वसंत ऋतु में ब्रजभूमि में श्रीकृष्ण और राधा के रास उत्सव को मुख्य रूप से मनाया जाता है।
औषधि ग्रंथ चरक संहिता के मुताबिक, वसंत ऋतु के पहले दिन यानि वसंत पंचमी को कामिनी और कानन में स्वत: ही यौवन फूट पड़ता है। इसलिए यह प्रेमी-प्रेमिकाओं के लिए इजहारे इश्क का दिवस भी होता है।
वसंत ऋतु में प्रकृति भी मद मस्त चाल चलने लगती है। टेसू के फूल खिल उठते हैं। सरसों के फूल फिर से झूमकर किसानों का गीत गाने लगते हैं। कोयल की कुहू-कुहू की आवाज कानों में सुनाई देने लगती है और गूंज उठता है मादकता से युक्त पूरा वातावरण।
वसंत ऋतु में प्राणायाम करने का विशेष महत्व है। इस मौसम की शुद्ध और ताजा वायु हमारे रक्त संचार को सुचारु रूप से चलाने में मददगार साबित होती है।