अर्जुन का अहंकार तोड़ने के लिए कृष्ण ने रचाया थे था ये खेल
अपने अपने जीवन में कई सारी पौराणिक कथाएं सुनी होंगी और पढ़ी भी होगी। लेकिन इस कथा को अपने कभी नहीं सुना होगा कि मृत्यु के देव यमराज और अर्जुन के मध्य भी एक भीषण युद्ध हुआ था। दअरसल पौराणिक कथा के अनुसार एक समय अर्जुन को अपने धनुर्विद्या पर बहुत घमंड हो गया था उन्हें लगने लगा था कि इस दुनिया में कोई भी उनके समान धनुधर है ही नहीं ......... अर्जुन के इस अभिमान को भगवान श्री कृष्ण समझ गए लेकिन उन्होंने कुछ नहीं कहा वे सही समय का इन्तजार करने लगे तभी एक दिन भगवान श्री कृष्ण अर्जुन को अपने साथ भ्रमण के लिए ले गए, मार्ग में उन्होंने एक कुटिया को देखा जहाँ से रोने की आवाज आ रही थी।
भगवान कृष्ण और अर्जुन ने उस कुटिया के अंदर प्रवेश करने पर पाया की एक ब्राह्मण - ब्राह्मणी अपने मृत बच्चे को हाथ में लिए रो रहे थे। कृष्ण को देख ब्राह्मणी ने कि हे! प्रभु मेरी जब भी कोई सन्तान जन्म लेती है तो वह जन्म के समय पश्चात ही मृत्यु को प्राप्त हो जाती है। हे प्रभु ! क्या हम पुरे जीवन नि:सन्तान रहेंगे। तभी अर्जुन ने कहा कि तुम्हें अब ओर दुःख सहने की कोई जरूरत नहीं है, मैं तुम्हारे पुत्रो के रक्षा करूँगा और अगर में ऐसा करने में सफल न हुआ तो आत्मदाह कर लूंगा। अभिमान में डूबे अर्जुन ऐसा कहकर भगवान कृष्ण के साथ वापस हस्तिनापुर की ओर लोट गए। जब उस ब्राह्मण की पत्नी के प्रसव का समय आया तो ब्राह्मण ने अर्जुन के पास गया जाकर उसकी प्रतिज्ञा याद दिलाई।
अर्जुन ने ब्राह्मण से कहा कि तुम चिंता न करो में तुम्हारी सन्तान को यमराज से वापस लेकर ही रहूंगा। अगर में ऐसा करने में सफल नहीं कर सका तो आत्मदाह कर लूंगा। अर्जुन उस ब्राह्मण की सनातन को बचाने यमलोग पहुंच गया। तब यमराज और अर्जुन के बिच बहुत भयंकर युद्ध हुआ, दोनों ने एक से बढ़कर एक शस्त्रो और अश्त्रों का प्रयोग किया लेकिन कोई परिणाम नहीं निकल पाया। तब यमराज ने अपने पिता सूर्य देव का ध्यान करते हुए अपना यमपाश अर्जुन पर चलाया जिसका वार इतना घातक था की अर्जुन के तीर भी उन्हें नहीं बचा सके। अर्जुन मूर्छित होकर गिरे पड़े। जब अर्जुन की मूर्छा टूटी तो उन्होंने अपने प्रतिज्ञा की याद आयी। वे ब्राह्मण की सन्तान की रक्षा यमराज से नहीं कर सकें थे। इसलिए अर्जुन आत्मदाह की तैयारी करने लगे , तभी कृष्ण ने उन्हें ऐसा करने से रोकते हुए कहा कि अर्जुन यह सब तो मेरी माया थी ताकि तुम यह जान सको की व्यक्ति को कभी भी अपने ताकत पर अभिमान नहीं करना चाहिए क्योकि नियति से बड़ी कोई ताकत नहीं है, कृष्ण अर्जुन को अपना शिष्य ही नहीं उन्हें अपना सबसे अच्छा मित्र समझते थे। इसलिए कृष्ण ने अर्जुन को यह अहसास कराया की इंसान के हाथो में सब कुछ कभी नहीं होता है। ऐसा करके भगवान कृष्ण ने अर्जुन के साथ अपनी मित्रता का फर्ज निभाया।