जानिए योगिनी एकादशी व्रत और पूजा के नियम, बनी रहेगी वासुदेव की कृपा
इंटरनेट डेस्क। दोस्तों आपको बता दे की योगिनी एकादशी व्रतकथा पद्मपुराण के उत्तरखण्ड में प्राप्त होती है। आषाढ़ मास की कृष्ण एकादशी को "योगनी" अथवा "शयनी" एकादशी कहते है। इस व्रतकथा के वक्ता श्रीकृष्ण एवं मार्कण्डेय हैं। श्रोता युधिष्ठिर एवं हेममाली हैं। जब युधिष्ठिर आषाढकृष्ण एकादशी का नाम एवं महत्त्व पूछते हैं, तब वासुदेव जी इस कथा को कहते हैं। इस महीने योगिनी एकादशी 9 जुलाई 2018 (सोमवार) को है। दोस्तों आज हम आपको इसके व्रत और पूजा के कुछ नियम के बारे में बता रहे है जिनको अपनाकर आप वासुदेव की कृपा पा सकते है। तो दोस्तों आप भी इन नियमो के बारे में जान लीजिए।
शास्त्रों के अनुसार दोस्तों आपको बात दे की योगिनी एकादशी का व्रत 88 हजार ब्राह्मणों को भोजन कराने के बराबर फल देता है। इसके व्रत को करने से अनजाने में हुए पाप से छुटकारा मिलता है और अंत में स्वर्ग प्राप्त होता है। योगिनी एकादशी व्रत करने से पहले की रात्रि में ही व्रत एक नियम शुरु हो जाते हैं। यह व्रत दशमी तिथि कि रात्रि से शुरु होकर द्वादशी तिथि के प्रात:काल में दान कार्यो के बाद समाप्त होता है।
दोस्तों आपको बता दे की एकादशी तिथि के दिन प्रात: स्नान आदि कार्यो के बाद, व्रत का संकल्प लिया जाता है। इस दिन स्नान करने के लिये मिट्टी का प्रयोग करना शास्त्रों में बहुत शुभ माना जाता है। इसके अतिरिक्त स्नान के लिये तिल के लेप का प्रयोग भी किया जा सकता है। स्नान करने के बाद कुम्भ स्थापना की जाती है, कुम्भ के ऊपर श्री विष्णु जी कि प्रतिमा रख कर पूजा की जाती है। ऐसे करने पर आपके ऊपर वासुदेव की कृपा बनी रहती है जिसके कारण घर में किसी भी प्रकार की कोई समस्या नहीं होती है।
दोस्तों आपको बता दे की धूप, दीप से पूजन किया जाता है। व्रत की रात्रि में जागरण करना चाहिए।दशमी तिथि की रात्रि से ही व्रती को तामसिक भोजन का त्याग कर देना चाहिए और इसके अतिरिक्त व्रत के दिन नमक युक्त भोजन भी नहीं किया जाता है। इसलिए दशमी तिथि की रात्रि में नमक का सेवन नहीं करना चाहिए।
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