जानिए कोणार्क के सूर्य मंदिर का इतिहास,जहां पहिए बताते हैं समय
कोणार्क, ओडिशा का एक छोटा सा शहर है।कोणार्क शब्द- कोण और अर्क से मिलकर बना है, जिसका मतलब है- सूर्य का किनारा।
यह शहर अपने सूर्य मंदिर के लिए विश्व प्रसिद्ध है।यह वर्ल्ड हेरिटेज साइट है। देश-विदेश से भी सैलानी इस मंदिर में आते हैं।
कोणार्क सूर्य मंदिर ओडिशा के पुरी में है।यह मंदिर भगवान सूर्य को समर्पित है।यह मंदिर जगन्नाथ पुरी से करीब 35 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।इस मंदिर को साल 1984 में यूनेस्को ने विश्व धरोहर स्थल घोषित किया था।
इस मंदिर को पूर्व दिशा की ओर ऐसे बनाया गया है कि सूरज की पहली किरण मंदिर के प्रवेश द्वार पर पड़ती है।इतिहासकार इस मंदिर को रहस्यों से भरा मानते हैं।
इस मंदिर का निर्माण 1250 ई. में गांग वंश राजा नरसिंहदेव प्रथम ने कराया था यानी कोणार्क सूर्य मंदिर 772 साल पुराना है।इतिहासकार कहते हैं कि इस मंदिर को बनाने के लिए इस्तेमाल किए गए पत्थरों को भारत के बाहर से लाया गया था।
माना जाता है कि इस मंदिर के निर्माण में 1200 कुशल शिल्पियों ने 12 साल तक काम किया लेकिन मंदिर का निर्माण कार्य पूरा नहीं हो पाया।ये भी बताया जाता है कि मुख्य शिल्पकार दिसुमुहराना के बेटे धर्मपदा ने निर्माण पूरा किया और मंदिर बनने के बाद उन्होंने चंद्रभागा नदी में कूदकर जान दे दी।
कोणार्क सूर्य मंदिर को रथ आकार में बनाया गया है जिसमें 12 जोड़ी पहिए हैं, जो साल के 12 महीनों का प्रतीक हैं।और इस रथ को सात घोड़े खींच रहे हैं,ये सात घोड़े सात दिनों को दर्शाते हैं।वहीं, इन पहियों में से 4 पहिए इस तरह बनें हैं कि ये दिन में आपको समय बता सकते हैं।