अंतिम संस्कार के बाद भी नहीं जली थीं कस्तूरबा गांधी की ये चूडियां !
9 अगस्त, 1942 को मुंबई में महात्मा गांधी शिवाजी पार्क में एक बहुत जनसभा को संबोधित करने वाले थे कि उससे एक दिन पहले ही बिरला हाउस से उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया।
गांधी जी के अरेस्ट होने के बाद सबसे बड़ा सवाल उठा कि उस सभा का मुख्य वक्ता कौन होगा क्योंकि उस समय पूरी मुंबई में गांधी जी के कद का कोई भी शख्स मौजूद नहीं था। तब कस्तूरबा गांधी ने कहा कि परेशान होने की जरूरत नहीं है, मीटिंग को मैं संबोधित करूंगीं।
कस्तूरबा गांधी की इस बात को सुनकर सभी स्तब्ध रह गए। उस समय वो ना सिर्फ बीमारी थीं बल्कि इससे पहले उन्होंने कभी भी इस स्तर की जनसभा को संबोधित नहीं किया था। इस भाषण के बाद उन्हें पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। तीस घंटों तक उन्हें सामान्य अपराधियों के साथ एक काल कोठरी में रखा गया। बाद में उन्हें पुणे के आगा खां पैलेस में ले जाया गया जहां महात्मा गांधी पहले से ही कैद थे।
जनवरी, 1944 तक गांधी जी को लगने लग गया था कि अब कस्तूरबा कुछ ही दिनों की मेहमान हैं। उनके देहांत से एक महीने पहले 27 जनवरी को उन्होंने गृह विभाग को खत लिखा कि कस्तूरबा के चेकअप के लिए मशहूर डॉक्टर दिनशा को बुलाया जाए। साथ ही उन्होंने ये भी अनुरोध किया कि उनकी पोती कनु गांधी को उनके साथ रहने की अनुमति दी जाए। लेकिन जीवन के अंतिम दिनों में उनके दाहिने हाथ में शीशे की पांच चूडियां थीं जो उन्होंने अपने पूरे वैवाहिक जीवन में हमेशा पहने रखी थीं।
अंतिम संस्कार के चौथे दिन जब रामदास और देवदास ने कस्तूरबा गांधी की अस्थियां जमा कीं तो उन्होंने पाया कि कस्तूरबा के शीशे की पांच चूडियां पूरी तरह से साबुत थीं। आग का उन पर कोई असर नहीं हुआ था। जब गांधी जी को ये बात बताई गई तो उन्होंने कहा कि ये संकेत है कि कस्तूरबा हमारे बीच से नहीं गई है, वो आज भी हमारे साथ है। कस्तूरबा गांधी की दिव्य आत्मा की शक्ति शायद उन पांच चूडियों में समा गईं।