देश में जब-जब कुंभ मेला लगता है, तब-तब साधू-संतों की खूब बातें होती हैं। इनमे सबसे अधिक चर्चित नागा साधू होते हैं। जैसा कि इनके नाम से ही पता चलता है कि ये हर मौसम में बिना कपड़ों के या कुछ अजीब वेशभूषा में ही रहते हैं। सर्दी हो या गर्मी, इनका रहने का अपना अलग ही ढंग होता है।

इसमें कोई शक नहीं कि आम जनता के लिए ये कुतूहल का विषय हैं, क्योंकि इनकी क्रियाकलाप, वेशभूषा साधना-विधि आदि सब अजरज भरी होती है।

एक योद्धा की तैयार होते हैं नागा साधू

पुराने समय में मंदिरों और मठों की सुरक्षा करने के लिए नागा साधुओं को तैयार किया जाता था। उन्होंने धर्मस्थलों की रक्षा के लिए कई लड़ाइयां भी लड़ी हैं।

लेकिन नागा साधू बनना इतना आसान नहीं है जितना कि सुनने में लगता है। क्योकिं इसकी ट्रेनिंग वैसी ही होती है जैसे कि किसी फौजी की ट्रेनिंग होती है। उन्हें नागा साधू की दीक्षा लेने से पहले स्वयं का पिंडदान, श्राद्ध और तर्पण खुद करना पड़ता है।

नागा साधुओं से जुड़ी कुछ रहस्य्मय बातें

--नागा साधू बनने ब्रह्मचर्य भी धारण करना पड़ता है जिसका अर्थ है कि किसी भी स्त्री के साथ कोई संबंध नहीं बनाया जा सकता है। खुद पर ये किस हद तक नियंत्रण रख पाते हैं यह जानने के लिए इनकी कई तरह से परीक्षा ली जाती है। तभी व्यक्ति नागा साधू बन पाता है।

-- वस्त्रों का त्याग नागा साधू बनने दूसरी शर्त है। हालाकिं सभी नागा साधू बिना कपड़ों के नहीं रहते, कुछ गेहुएं रंग के वस्त्र भी पहनते हैं। लेकिन इससे अधिक वस्त्र नागा साधु को धारण करने की मनाही है। वस्त्र का त्याग कर के ही वे इस कठिन परीक्षा में सफल होते हैं।

--ये अपने शरीर पर भस्म लगा कर रखते हैं और इसे ही वस्त्र मानते हैं। उन्हें शिखा सूत्र (चोटी) का परित्याग करना होता है। या तो उन्हें अपने पूरे बालों का त्याग करना होता है या फिर वे पूरे जीवन में कभी बाल नहीं कटवा सकते हैं। इन दोनों में से एक नियम का इन्हे पालन करना होता है।

-- इन्हे भोजन भी भिक्षा मांग कर करना होता है। परंपरानुसार, वे एक दिन में 7 घरों से भिक्षा ले सकते हैं और इसी तरह इन्हे भोजन करना होता है।

-- भले ही सर्दी हो या गर्मी इन्हे जमीन पर ही सोना होता है। ये पलंग, खाट, चौकी आदि का उपयोग नहीं कर सकते हैं। वर्षों के प्रशिक्षण के बाद इनके शरीर को किसी तरह के कोई वातावरण से ख़ास फर्क नहीं पड़ता है। क्योकिं इनका शरीर इसका आदि हो जाता है।

-- नागा साधू एक सन्यासी को छोड़कर अन्य किसी को प्रणाम नहीं करते हैं। लिंग-भंग भी नागा साधुओं की एक रहस्यमय प्रथा है, जिसका प्रयोजन पूर्ण ब्रह्मचर्य है।

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