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हिंदू धर्मशास्त्रों के मुताबिक, पितृ पक्ष में पड़ने वाली एकादशी को इंदिरा एकादशी कहा जाता है। चूंकि यह एकादशी पितृ पक्ष में पड़ती है, इसलिए इस एकादशी का महत्व और भी बढ़ जाता है। मान्यता है कि अगर कोई पूर्वज जाने-अनजाने में हुए पाप कर्मों के कारण दंड भोग रहा है, तो इस दिन पूरे विधि-विधान से व्रत कर उनके नाम पर दान करने से पूर्वजों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस बार इंदिरा एकादशी का व्रत गुरुवार के दिन 5 अक्टूबर को है।

व्रत करने की विधि

इंदिरा एकादशी के दिन अन्न ग्रहण नहीं किया जाता है, फलाहार कर व्रत रख सकते हैं। सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि कर सूर्यदेव को अर्घ्य दें। तत्पश्चात भगवान विष्णु के समक्ष घी का दीया जलाएं। ईश्वर का ध्यान कर भजन-आरती आदि करें। एकादशी के अगले दिन सुबह पारण किया जाता है।

इंदिरा एकादशी की कथा

महिष्मतीपुरी के राजा इन्द्रसेन हरि भक्त थे। एक दिन देवर्षि नारद उनके दरबार में आए तब राजा इंद्रसेन ने उनके आने का कारण पूछा। देवर्षि ने कहा कि एक दिन यमलोक में मैंने तुम्हारे पिता को देखा। व्रतभंग के दोष में वह यमलोक की यातनाएं झेलने को मजबूर हैं। तुम्हारे पिता ने यह संदेश भेजा है कि तुम उनके लिए इन्दिरा एकादशी का व्रत करो, ताकि उन्हें स्वर्गलोक की प्राप्ति हो सके।

यह सुनकर इन्द्रसेन ने देवर्षि नारद से इंदिरा एकादशी व्रत की जानकारी मांगी। देवर्षि नारद ने कहा कि आश्विन मास की यह एकादशी पितरों को मोक्ष प्रदान करती है। व्रती को पूरे भक्ति भाव से भगवान का भजन करना चाहिए। भाई-बन्धु, नाती और पु्त्र आदि को खिलाकर स्वयं भी मौन धारण कर भोजन करना। ऐसा करने पर तुम्हारे पिता को स्वर्गलोक की प्राप्ति होगी। इस प्रकार राजा इन्द्रसेन ने इंदिरा एकादशी का व्रत किया, जिससे उनके पिता को हमेशा के लिए बैकुण्ठ धाम का वास मिला।

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