जलेबी का नाम लेते ही हल्‍का नरम और कुरकरा सा स्‍वाद दिमाग में घूमने लगता है और मुंह में पानी आ जाता है। चाशनी में डूबी गर्म-गर्म जलेबियां हर किसी की फेवरेट होती हैं। जाड़े और बरसात के दिनों में जलेबी खाने का अलग ही मजा होता है।
आप यह बात जानकर हैरान हो जाएंगे कि जलेबी भारत की नहीं बल्कि पर्शिया की देन है। जलेबी अरेबिक शब्द 'जलाबिया' या फारसी शब्द 'जलिबिया' से आया है। मध्यकालीन पुस्तक 'किताब-अल-तबीक़' में 'जलाबिया' नामक मिठाई का उल्लेख मिलता है। मतलब साफ है, इस मिठाई का उद्भव पश्चिम एशिया में हुआ था।

जलेबा— इंदौर शहर में 300 ग्राम वज़नी 'जलेबा' मिलता है।
पनीर जलेबी— जलेबी के मिश्रण में कद्दूकस किया पनीर डालकर पनीर जलेबी तैयार की जाती है।

चनार जिल्पी— बंगाल में 'चनार जिल्पी' नामक यह मिठाई स्वाद में बंगाली गुलाब जामुन पंटुआ के जैसी होती है।
मावा जलेगी— दूध और मावा से बनी जलेबी के मिश्रण को मावा जलेबी कहते हैं।

इमरती— बाजार में जलेबी की तरह द‍िखने वाली एक मिठाई मिलती है, जिसे इमरती कहते हैं। इसे बनाने का तरीका जलेबी की तरह होता है। बस इसकी बनावट थोड़ा अंतर होता है, जहां जलेबी गोल-गोल होती है वहीं इमरती जालीनुमा होती है।
भारत में कैसे पहुंची जलेबी?
तुर्की आक्रमणकारियों के साथ जलेबी भारत पहुंची। जाहिर है भारत में जलेबी का इतिहास 500 साल पुराना है। पांच सदियों के दौरान जलेबी में कई बदलाव हुए है। जलेबी कहीं पोहे, तो कहीं दही और कहीं रबड़ी के साथ खाई जाती है।

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