850 साल पुराना है कुंभ मेले का इतिहास, जानिए इसके पीछे की पौराणिक कथा
कुंभ का मेला का इतिहास कम से कम 850 साल पुराना है। कुंभ मेला मकर संक्रांति से शुरू होता है। हिंदू धर्म के मुताबिक मान्यता है कि किसी भी कुंभ मेले में पवित्र नदी में स्नान या तीन डुबकी लगाने से सभी पुराने पाप धुल जाते हैं। महाकुंभ का आयोजन केवल चार शहरों में किया जाता है। ये शहर हैं - प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक।
हिंदू धर्म में कुंभ की धार्मिक मान्यता है और इसे एक महत्वपूर्ण पर्व के रूप में मनाया जाता है। कुंभ मेला हर 12 साल में आता है। दो बड़े कुंभ मेलों के बीच एक अर्धकुंभ भी लगता है। इस बार साल 2019 में आने वाला कुंभ मेला दरअसल, अर्धकुंभ ही है। हिंदू धार्मिक मान्यता के अनुसार किसी भी कुंभ मेले में पवित्र नदी में स्नान या तीन डुबकी लगाने से सभी पुराने पाप धुल जाते हैं और मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
हरिद्वार, प्रयाग, नासिक और उज्जैन में सदियों से हर तीसरे वर्ष अर्ध या पूर्ण कुम्भ का आयोजन होता है। यह मूल रूप में बृहस्पति और सूर्य ग्रह की स्थिति के आधार पर विभिन्न स्थानों पर मनाया जाता है। इस दिन कुंभ स्नान करने से आत्मा को उच्च लोक की प्राप्ति हो जाती है।
कुंभ को लेकर कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं जिनमें प्रमुख समुद्र मंथन के दौरान निकलनेवाले अमृत कलश से जुड़ा है। महर्षि दुर्वासा के शाप के कारण जब देवता कमजोर हो गए तो दैत्यों ने देवताओं पर आक्रमण कर उन्हें परास्त कर दिया। तब भगवान विष्णु ने उन्हें दैत्यों के साथ मिलकर क्षीरसागर का मंथन करके अमृत निकालने की सलाह दी। क्षीरसागर मंथन के बाद अमृत कुंभ के निकलते ही इंद्र के पुत्र ‘जयंत’ अमृत-कलश को लेकर आकाश में उड़ गए। उसके बाद दैत्यगुरु शुक्राचार्य के आदेश पर दैत्यों ने अमृत को वापस लेने के लिए जयंत का पीछा कर उसे पकड़ लिया। अमृत कलश पर अधिकार जमाने के लिए देव-दानवों में बारह दिन तक लगातार युद्ध होता रहा। इस युद्ध के दौरान पृथ्वी के चार स्थानों प्रयाग, हरिद्वार, उज्जैन, नासिक में कलश से अमृत बूंदें गिरी थीं। शांति के लिए भगवान ने मोहिनी रूप धारण कर सबको अमृत बांटकर देव-दानव युद्ध का अंत किया।