आज हम आपको उस जगह के बारे में बताने जा रहें है जहां माता सीता धरती में समा गईं थीं। रामायण काल से जुड़ा और भगवान राम को समर्पित यह मंदिर उत्तर प्रदेश के संत रविदास नगर जिला में स्थित है। उत्तर प्रदेश, इलाहाबाद और वाराणसी के मध्य स्थित यह जगह हिंदुओं के लिये अत्यंत महत्वपूर्ण है। पर्यटकों को आकर्षित करने वाले इस स्थान में माथा टेकने के लिये हर साल कई पर्यटक आते हैं।

इस मंदिर स्थल में सीता माता अपनी इच्छा के अनुसार धरती में समा गईं थीं। उत्तर प्रदेश के संत रविदास नगर में गंगा के किनारे स्थित इस मंदिर को सीता समाहित स्थल के नाम से भी जाना जाता है। मान्यता है कि इस स्थान पर माँ सीता ने अपने आपको धरती में समाहित कर लिया था। यहाँ पर हनुमानजी की 110 फीट ऊँची मूर्ति है, जिसे विश्व की सबसे बड़ी हनुमान जी की मूर्ति होने का गौरव प्राप्त है।

स्वामी जितेंद्रानंद जी के असीम प्रयास से और श्री प्रकाश नारायण पुंज की मदद से ये स्थान पर्यटक स्थल के रूप में उभर कर आया है। सीता समाहित स्थल मंदिर माता सीता के धरती में प्रवेश का बोध कराता है। जब सीता जी और श्रीराम के अंतिम मिलन पर सत्य रूपी सतीत्व के रक्षार्थ श्रीराम के आदेश पर महर्षि वाल्मीकि के द्वारा शुद्धता की प्रमाणिकता देने पर भी माता सीता स्वयं शुद्धता रूपी सतीत्व की प्रमाणिकता के लिए पृथ्वी मां की गोद में सदा के लिए समा गईं।

मान्यता है कि जब सीताजी धरती की गोद में जाने लगीं तो श्रीराम जी ने उनका केश पकड़ लिया, जो आज भी सीता समाहित मंदिर के आसपास विद्यमान है। इसे सीता केश के रूप में जाना जाता है। महिलाएं श्रद्धाभाव से सीताकेश का दर्शन पूजन कर शृंगार करती हैं। इससे उन्हें मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।

खासकर श्रावण मास में महिलाएं सीता केश का विशेष पूजन अर्चन और शृंगार कर अपने अखंड सुहाग की कामना करती हैं। गंगा नदी के किनारे बने इस मंदिर में खूबसूरत झरने के ऊपर शिवजी का मंदिर बनाया गया है। इसके अलावा यहां पर हनुमान जी की एक बड़ी मूर्ति भी बनाई गई है, जिसे देखने के लिये कई टूरिस्ट आते है। नदी के साथ-साथ यह मंदिर चारों तरफ से प्रकृति से घिरा हुआ है। इस खूबसूरत मंदिर में आप दर्शन करने के साथ घूमने के मजे भी ले सकते हैं।

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