गणगौर पूजा हर साल चैत्र शुक्ल पक्ष की तृतीया तो को की जाती है। यह पर्व विशेष रूप से महिलाएं रखती हैं। इस दिन विवाहित स्त्रियां अपने पति को बताये बिना व्रत रखती हैं। अविवाहित कन्याएं मनोवांछित वर प्राप्त करने के लिए गणगौर पूजा करती हैं। इस दिन माता पार्वती और भगवान शिव की पूजा की जाती है। जानिए इस पर्व के पीछे की पौराणिक कथा, महत्व, पूजा विधि और संबंधित सभी जानकारी…

सुहागिनें इस दिन दोपहर तक व्रत रखती हैं व कथा सुनती हैं, नाचते गाते खुशी से पूजा-पाठ कर इस पर्व को मनाती हैं। चैत्र शुक्ल द्वितीया को किसी पवित्र तीर्थ स्थल या पास के सरोवर में गौरीजी को स्नान करवायें। तृतीया के दिन गणगौर माता को सजा-धजा कर पालने में बैठाकर नाचते गाते उनकी शोभायात्रा निकालते हुए उन्हें विसर्जित किया जाता है। उपवास भी इसके पश्चात ही तोड़ा जाता है।

मान्यता है कि गौरीजी स्थापना जहां होती है वह उनका मायका होता है और जहां विसर्जन किया जाता है वह ससुराल। इस दिन गणगौर माता को फल, पूड़ी, गेहूं चढ़ाये जाते हैं। इस दिन कवारी लड़कियां और विवाहत स्त्रियां दो बार गणगौर का पूजन करती हैं। दूसरी बार की पूजा में शादीशुदा स्त्रियां चोलिया रखती हैं, जिसमें पपड़ी या गुने रखे जाते हैं। इसमें 16 फल खुद के, सोलह भाई के, सोलह जवाई के और सोलह फल साल के होते हैं। चोले के ऊपर साड़ी व सुहाग का समान रखा जाता है। शाम में सूरज ढलने के बाद गाजे बाजे के साथ गणगौर को विसर्जित किया जाता है और जितना चढ़ावा होता है उसे माली को दे दिया जाता है।

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