काले पानी की सजा के बारे में आपने सुना होगा। हालाकिं इसे अब राष्ट्रिय स्मारक में बदल दिया गया है। लेकिन ग्रेजों द्वारा भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सेनानियों को कैद रखने के लिए बनाई गई थी, जो कि मुख्य भारत भूमि से हजारों किलोमीटर दूर स्थित थी। इस सजा के बारे में सुन कर ही लोग कांपने लगते थे। इस तक पहुंचने के लिए हजार किलोमीटर दुर्गम मार्ग पड़ता था।

आज हम आपको काले पानी की इसी सजा के बारे में जानकारी देने जा रहे हैं।


1. अंडमान निकोबार द्वीप समूह पर बनी सेल्युलर जेल को अब राष्ट्रीय स्मारक में बदल दिया गया हो लेकिन बटुकेश्वर दत्त और वीर सावरकर जैसे अनेक सेनानियों की कहानी आज भी यह जेल सुनाती है।

2. सेल्युलर जेल भारतीय इतिहास का एक काला अध्याय है। यहाँ पर स्वतंत्रतता सेनानियों को बेड़ियों में जकड़ कर रखा जाता था। हजारों सेनानियों को फांसी दे दी गई, तोपों के मुंह पर बांधकर उन्हें उड़ा दिया गया। कई ऐसे भी थे जिन्हें तिल तिलकर मारा जाता था, इसके लिए अंग्रेजों के पास सेल्युलर जेल का अस्त्र था।

3.यहां कितने भारतीयों को फांसी की सजा दी गई और कितने मर गए इसका रिकॉर्ड मौजूद नहीं है। लेकिन आज भी जीवित स्वतंत्रता सेनानियो के जेहन में कालापानी शब्द भयावह जगह के रूप में बसा है।

4. अंडमान के पोर्ट ब्लेयर सिटी में स्थित इस जेल की चाहरदीवारी इतनी छोटी थी कि इसे आसानी से कोई भी पार कर सकता है। लेकिन यह स्थान चारों ओर से गहरे समुद्री पानी से घिरा हुआ है, जहां से सैकड़ों किमी दूर पानी के अलावा कुछ भी नजर नहीं आता है। लेकिन यहाँ से कैदी निकल कर नहीं भाग भी नहीं सकता था।

5. सुदूर द्वीप होने की वजह से यह विद्रोहियों को सजा देने के लिए अनुकूल जगह समझी जाती थी। उन्हें सिर्फ समाज से अलग करने के लिए यहां नहीं लाया जाता था, बल्कि उनसे जेल का निर्माण, भवन निर्माण, बंदरगाह निर्माण आदि के काम में भी लगाया जाता था।

6. सबसे पहले 200 विद्रोहियों को जेलर डेविड बेरी और मेजर जेम्स पैटीसन वॉकर की सुरक्षा में यहां लाया गया। उसके बाद 733 विद्रोहियों को कराची से लाया गया। भारत और बर्मा से भी यहां सेनानियों को सजा के बतौर लाया गया था।

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