महाभारत में जब भीष्म पितामह बाणों की शय्या पर लेटे थे। तब युधिष्ठिर ने उनकी लंबी उम्र व स्वस्थ जीवन के रहस्य को जानने के लिए उनसे उपदेश देने की प्रार्थना की। जिसके बाद भीष्म ने राजधर्म और मोक्ष धर्म का मूल्यवान उपदेश विस्तार के साथ दिया। उन्होंने श्रीकृष्ण के कहने पर धर्म को ध्यान में रखते हुए ये उपदेश दिए थे कि
- खुद अच्छी आदतों को स्वीकार न कर दूसरों को इसका ज्ञान देना गलत है।
- अपने क्रोध को वश में नहीं करना और उस समय वशीभूत नहीं रहना गलत है।

- मनुष्य को हमेशा अपना मन अपने वश में रखना चाहिए।
- कभी अपनी सफलता या किसी सफलता पर पहुंचने पर घमंड नहीं करना चाहिए।
- हमेशा अपनी अनावश्यक इच्छाओं की पूर्ति नहीं करनी चाहिए।
- अपने से बड़े या अपने दुश्मन की कड़वी बातें सुनकर भी उन्हें उत्तर नहीं देना चाहिए।
- अपने से बड़ो के द्वारा आपकी गलती पर सुनना आपकी गलती का पश्यताप है।

- अपने घर में अतिथि का स्वागत करना व लाचार को आश्रय देना, भिखारी को भोजन देना अच्छा सुखदायी होता है।
- अपने बुजर्गो को नियम पूर्वक शास्त्र का पाठ करवाना बताना और पढ़ कर सुनाना आपका धर्म है।
- रात्रि के समय जगना और दिन सोना ये प्रकृति अपमान है।
- अपने स्वाद के लिए नहीं बल्कि अपने स्वास्थ्य के लिए भोजन करना चाहिए। भोजन को झूठा नहीं छोड़ना चाहिएइससे भोजन का अपमान होता है।
महाभारत में भीष्म पितामह ये उपदेश दिए थे। जिन्हें हम आज भी अपनी ज़िंदगी में उतार सकते है। अगर आज हम इस नियमों का पालन कर अपनी ज़िंदगी को सेहतमंद और लाभदायक बना सकते है। भीष्म पितामह की जयंती पर हम उनके इन उपदेशों का पालन कर प्रकृति को सूंदर और सुखदायी बना सकते है।

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