दुर्योधन ने अपनी पत्नी को कर्ण के साथ कमरे में हंसी-ठिठोली करते देखा, फिर कहा कुछ ऐसा
काम्बोज के राजा चन्द्रवर्मा की पुत्री भानुमति दुर्योधन की पत्नी थी। जिन दिनों काम्बोज के राजा ने भानुमति के लिए स्वयंवर का आयोजन किया था, तब भानुमति के स्वयंवर में रुक्मी, शिशुपाल, दुर्योधन, जरासंध, कर्ण सहित कई राजा आमंत्रित थे। भानुमति इतनी सुंदर और तेज तर्रार राजकुमारी थी कि उस पर कई राजकुमार मोहित थे। स्वयंवर में दुर्योधन भी भानुमति पर मोहित हो चुका था। स्वयंवर में जब भानुमति हाथ में माला लेकर एक-एक करके सभी राजाओं के पास से गुजरी, तो दुर्योधन चाहता था कि भानुमति माला उसे पहना दे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। भानुमति आगे बढ़ गई। तभी दुर्योधन ने भानुमति का हाथ पकड़ा और खुद ही माला पहन ली। यह देखकर सभी राजाओं ने तलवारें निकाल लीं। दुर्योधन ने कहा सभी राजाओं को मुझसे पहले कर्ण से युद्ध करना होगा। इसके बाद कर्ण ने सभी राजाओं को एक ही बार में परास्त कर दिया।
जब दुर्योधन भानुमति को लेकर हस्तिनापुर पहुंचा तो उसका जबरदस्त विरोध हुआ। इसके बाद उसने कहा कि भीष्म पितामह भी अपने सौतेले भाइयों के लिए अम्बा, अम्बिका और अम्बालिका का हरण करके ले आए थे। यह तर्क सुनकर सभी शांत हो गए और दुर्योधन का भानुमति के साथ विवाह हुआ। भानुमति के पुत्र लक्ष्मण का वध महाभारत युद्ध में अर्जुन पुत्र अभिमन्यु ने किया था।
कहते हैं कि दुर्योधन से विवाह के पश्चात भानुमति और कर्ण में भी मित्रता हो चुकी थी। दोनों एक दूसरे के साथ मित्र की भांति रहते थे। एक बार दुर्योधन की पत्नी भानुमति और कर्ण शतरंज खेल रहे थे। इस खेल में कर्ण जीत रहा था, तभी दुर्योधन को आते देख भानुमति ने खड़ा होने का प्रयास किया। लेकिन कर्ण को दुर्योधन के आने के बारे में पता नहीं था, इसलिए भानुमति ने जैसे ही अपने स्थान से उठने की कोशिश की, कर्ण ने भानुमति का हाथ पकड़कर उसे बिठाना चाहा। इस दौरान भानुमति के बदले उसके मोतियों की माला कर्ण के हाथ में आकर टूट गई। तब तक दुर्योधन कमरे में आ चुका था। भानुमति और कर्ण दोनों डर गए कि दुर्योधन को कहीं कुछ गलत शक न हो जाए। परंतु दुर्योधन अपने मित्र कर्ण पर बहुत विश्वास करता था।
इसके बाद दुर्योधन ने कर्ण से कहा कि मित्र मोतियों की माला तो उठा लो, इसके बाद वह जिस उद्देश्य से आया था, उस संबंध में कर्ण से चर्चा करने के बाद वापस चला गया। इस प्रकार दुर्योधन के इस विश्वास की बदौलत कर्ण गलत समझ लिए जाने से बच गया। दुर्योधन भी भानुमति के साथ हमेशा मित्रवत ही व्यवहार करता था। कहते हैं कि भानुमति सुंदर होने के साथ शरीर से भी काफी शक्तिशाली थी। गांधारी ने सती पर्व में कहा है कि भानुमति खेल-खेल में दुर्योधन के साथ कुश्ती भी करती थी, कई बार दुर्योधन हार भी जाता था।