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हिंदू धर्मशास्त्रों में पितृ पक्ष की अवधि में श्राद्धकर्म नहीं करने से होने वाली हानियों के बारे में विशेष रूप से जिक्र किया गया है। श्राद्ध के दौरान पितरों के लिए पिंडदान के रूप में खाने-पीने की व्यवस्था की गई है। पितरों की आत्मा के लिए भोजन-पानी की व्यवस्था का विधान पितृ पक्ष में किया गया है।

गरूड़ पुराण में बताया गया है कि पितरों के परलोक गमन करने पर यदि सगे-संबंधी उनकी आत्मा को अन्न-जल न दें तो वहां उन्हें बहुत ही भयंकर दु:ख होता है। विशेष रूप से पितृ पक्ष के दौरान पितरों की आत्मा इस उम्मीद में रहती है कि उन्हें पुत्र-पौत्रों से अन्न-जल प्राप्त करने के बाद संतुष्टि मिलेगी।

इसी उम्मीद में पितृगण श्राद्ध पक्ष अथवा पितृ पक्ष में पृथ्वी लोक पर आते हैं। ऐसे में इस उचित अवधि में जो संतानें अपने पितरों का जल व शाक से श्राद्ध नहीं करते हैं, उनके पितर दुखी व निराश होकर अपने लोग वापस लौट जाते हैं। इसके बाद श्राद्ध अथवा पिंडदान नहीं करने वाले उस परिवार को अनेक प्रकार की कठिनाईयों का सामना करना पड़ता है।

मार्कण्डेय पुराण के मुताबिक, जिस कुल अथवा परिवार में पितरों के लिए श्राद्धकर्म नहीं किया जाता है, उस परिवार में दीर्घायु, निरोगी और वीर संतानें जन्म नहीं लेती हैं और परिवार में कभी मंगल कार्य नहीं होता है।

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