इस वर्ष दीवाली 31 अक्टूबर, गुरुवार को मनाई जाएगी। दीवाली के साथ कई प्राचीन परंपराएँ जुड़ी हुई हैं, जिनमें से कुछ के बारे में बहुत कम लोग जानते हैं। हजारों वर्षों से ये परंपराएँ निभाई जा रही हैं, जिनमें ‘शुभ-लाभ’ लिखना भी शामिल है। यह विशेष रूप से लक्ष्मी पूजा के दौरान किया जाता है और इसके पीछे महत्वपूर्ण धार्मिक मान्यताएँ और कारण हैं। आइए इस परंपरा के पीछे की वजह जानते हैं।

दीवाली पर ‘शुभ-लाभ’ लिखने की परंपरा

लक्ष्मी पूजा के समय दीवाली की संध्या में स्वस्तिक का चिह्न बनाकर उसके चारों ओर ‘शुभ-लाभ’ लिखा जाता है। यह चिह्न भगवान गणेश का प्रतीक माना जाता है, जो दीवाली की पूजा के महत्व को और भी बढ़ाता है। स्वस्तिक को देवी लक्ष्मी और भगवान गणेश दोनों का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए पूजा में शामिल किया जाता है।

‘शुभ-लाभ’ का धार्मिक महत्व

दीवाली पूजा के दौरान स्वस्तिक के चारों ओर ‘शुभ-लाभ’ लिखने का विशेष महत्व है। ‘शुभ’ और ‘लाभ’ भगवान गणेश के दोनों पुत्रों के नाम माने जाते हैं। धार्मिक ग्रंथों में ‘शुभ’ को ‘क्षेम’ भी कहा गया है। ‘शुभ’ का अर्थ होता है कल्याणकारी और मंगलकारी, जबकि ‘लाभ’ का मतलब होता है ईमानदारी से प्राप्त धन या लाभ। जब जीवन में इन दोनों का समावेश होता है, तभी सुख और शांति प्राप्त होती है।

‘शुभ-लाभ’ लिखने का उद्देश्य

लक्ष्मी पूजा में ‘शुभ-लाभ’ लिखना इस बात का प्रतीक है कि देवी लक्ष्मी की कृपा से हमें ऐसे धन और संपत्ति की प्राप्ति हो जो शुभ कार्यों के लिए इस्तेमाल हो सके और जीवन में समृद्धि एवं शांति बनी रहे। दीवाली धन की देवी माँ लक्ष्मी का विशेष पर्व है, जहाँ ईमानदारी से अर्जित धन की कामना की जाती है, क्योंकि ऐसा धन ही स्थायी सुख और संतोष का माध्यम बनता है।

इस प्रकार दीवाली पूजा में ‘शुभ-लाभ’ लिखने की परंपरा हमें जीवन में ईमानदारी, कल्याण, और समृद्धि के प्रति प्रेरित करती है। यह शुभ चिन्ह न केवल देवी लक्ष्मी और भगवान गणेश का आशीर्वाद दर्शाता है, बल्कि हमें सही दिशा में कार्य करने और धन को सही मार्ग में अर्जित करने की भी प्रेरणा देता है।

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