हिंदू धर्म में भगवान श्रीगणेश को प्रथम पूज्य माना गया है। मान्यता है कि बिना भगवान गणपति की पूजा किए कोई भी शुभ काम शीघ्रता से पूर्ण नहीं होता है। शिव पुराण में वर्णित है कि त्रिपुरासुर का वध करने के लिए स्वयं भगवान शिव को अपने इस बलशाली पुत्र की पूजा करनी पड़ी थी। ऐसे में यह कैसे हो सकता है कि युद्ध के दौरान परशुराम ने श्रीगणेश का एक दांत तोड़ दिया था। आइए जानें, यह कैसे संभव हो सका। एक दांत होने के कारण गणपति महाराज को एकदंत कहा जाता है।

ब्रह्मवैवर्त पुराण के मुताबिक, परशुराम महोदव के परम शिष्य थे। उन्होंने पृथ्वी पर विष्णु अवतार लिया था। धरती को क्षत्रियों के अत्याचार से मुक्त करने के लिए परशुराम ने भगवान शिव से मिले फरसे से 17 बार धरती से क्षत्रियों को खत्म कर दिया था। देवाधिदेव महादेव का वह फरसा अमोघ था। पृथ्वी को 17 बार क्षत्रिय विहिन करने के बाद परशुराम एक बार भगवान शिव और देवी पार्वती के दर्शनों हेतु कैलाश पर्वत पर गए। उस समय भगवान शिव सो रहे थे तथा पहरे पर गणपति महाराज मौजूद थे।

श्रीगणेश जी ने क्रोधी परशुराम को रोक लिया। फिर क्या था, परशुराम गणपति महाराज से झगड़ने लगे। झगड़ा इतना बढ़ गया कि परशुराम ने गणेश जी को धक्का दे दिया। धरती पर गिरते ही गणेश जी को क्रोध आ गया। चूंकि परशुराम ब्राह्मण थे, इसलिए गणपति उन पर प्रहार नहीं करना चाहते थे। लेकिन उन्होंने परशुराम को अपनी सूंड में पकड़कर चारो दिशाओं में गोल-गोल घुमा दिया। इस दौरान श्रीगणेश ने परशुराम को अपने श्रीकृष्ण स्वरूप का भी दर्शन करवा दिया। तत्पश्चात उन्होंने परशुराम को अपनी सूंड से मुक्त कर दिया।

भगवान गणेश द्वारा मुक्त किए जाने के बाद परशुराम कुछ देर तक शांत रहे, लेकिन अपने अपमान का अभास होते ही उन्होने अपने फरसे से श्रीगणेश पर प्रहार कर दिया। चूंकि वह फरसा स्वयं महादेव ने परशुराम को दिया था, इसलिए श्रीगणेश उस फरसे के वार को विफल नहीं होने देना चाहते थे। यही सोचकर उन्होंने परशुराम के फरसे का वार अपने एक दांत पर झेल लिया। लेकिन फरसे के प्रहार से उनका वह दांत टूटकर गिर गया। कैलाश पर कोलाहल सुनकर भगवान शिव अपने शयनकक्ष से बाहर आए और इस युद्ध को शांत करवाया। तभी से गणपति महाराज एकदंत कहलाने लगे।

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