जब समस्या बहुत अधिक हो जाती है, तो लोग विज्ञान और चिकित्सा जगत की उपेक्षा करते हैं और अंधविश्वास की तरफ चले जाते है। स्थिति अब ऐसी हो गई है कि अब लोग अपनी स्थिति के लिए कोरना को दोषी ठहराने के बजाय वर्ष 2020 को दोषी ठहरा रहे हैं। लोग 2020 को खत्म होने का इंतजार कर रहे हैं। तबाही का यह साल न केवल लोगों को शारीरिक रूप से बल्कि आर्थिक, सामाजिक और अब मानसिक रूप से भी क्षति पहुंचा रहा है।

वर्तमान में यह माना जाता है कि मंत्रालय की वेबसाइट के अनुसार, पिछले 24 घंटों में कोविड -19 से ठीक होने वाले रोगियों की संख्या 60,77,976 तक पहुंचने के साथ भारत में कोरोना की गति धीमी हो गई है। जिसके अनुसार संक्रमण के खिलाफ वसूली दर 86.17% रही है। हालांकि, 74,383 नए मामलों के साथ, संक्रमण की कुल संख्या बढ़कर 70,53,806 हो गई है। मतलब, वसूली दर निश्चित रूप से बढ़ रही है। लेकिन पिछले 6 महीनों के एक अध्ययन के बाद, यह पता चला है कि गिरावट अस्थायी हो सकती है। क्योंकि, यह समय-समय पर होता है।

शहर अस्पतालों और ऑक्सीजन सिलेंडर की कमी से ग्रस्त है तो कुछ ही दिनों में यह स्थिति भी बदल जाती है। कोरोना की अराजकता के बीच लोग बुरी तरह से परेशान हैं। जब तक इस वायरस का कोई इलाज नहीं होगा तब तक हम इस वायरस से कैसे छुटकारा पाएंगे? कोई बता नहीं सकता और शायद ये शब्द और यह स्थिति लोगों के दिमाग को बहुत जल्दी प्रभावित कर रही है। जो लोग इस स्थिति में भी सकारात्मक हैं उन्हें बहुत परेशानी नहीं हो रही है लेकिन जो लोग मानसिक रूप से मजबूत नहीं हैं वे इस स्थिति के सामने घुटने टेक रहे हैं। इस हालत में ठीक होने के बाद भी लोग दर्द से हार रहे हैं ।

इस समस्या के कारण कई लोग मानसिक रूप से बीमार हो रहे हैं। शहर के जाने-माने मनोचिकित्सक डॉ प्रशांत भीमनी के अनुसार, कोरोना महामारी के बीच मानसिक बीमारी की घटनाओं में लगभग 60% की वृद्धि हुई है। तब ऐसा नहीं लगता कि मानसिक रोग शारीरिक रोगों के बाद समाज को नुकसान पहुंचा रहे हैं।

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