कोरोना के संक्रमण के साथ साथ अब म्यूकरमाइकोसिस (ब्लैक फंगस) के मामले बढ़ने लगे हैं। विशेषज्ञों के अनुसार जो लोग कोरोना के संक्रमण से छुटकारा पा चुके हैं उन्हें ओरल हाइजीन ना रख पाने के कारण ये बिमारी हो जाती है। जो संक्रमित आक्सीजन पर होते हैं, उनके मुंह की कई दिन तक सफाई नहीं हो पाती। ऐसे में उनके मुँह में ब्लैक फंगस होने का खतरा बढ़ जाता है। इसलिए जो मरीज ऑक्सीजन पर है उनकी मुँह की सफाई का भी विशेष ध्यान रखना होता है।

मध्य प्रदेश के कई जिलों में ब्लैक फंगस के मरीजों की संख्या बढ़ने से जरूरी दवाओं की किल्लत शुरू हो गई है। इसके अलावा झारखंड सरकार अलर्ट हो गई है और कहा है कि इसकी अनदेखी न करे।

यह है बड़ी वजह

जब किसी मरीज को ऑक्सीजन पर रखा जाता है तो कई दिनों तक मेडिकल स्टाफ उनके मुँह की सफाई का ध्यान नहीं रखता है। इससे मुंह और नाक में लगातार आक्सीजन जाने के चलते सफेद पपड़ी जम जाती है, यहीं से फंगस व्यक्ति में प्रवेश कर जाता है।

विशेषज्ञों के मुताबिक यह फंगस खून के साथ बहकर फेफड़ों, नाक, आंख और मस्तिष्क में पहुंचता है। इसके दुष्प्रभव से सूजन होने लगती है। ह्यूमिडीफाइड ऑक्सीजन में जल्दी पनपता है।

मधुमेह के मरीजों को सबसे ज्यादा खतरा

झारखंड के स्टेट एपिडेमियोलाजिस्ट डा. प्रवीण कर्ण के अनुसार ब्लैक फंगस का ज्यादा खतरा मधुमेह के मरीजों को है। स्टेरायड के अलावा कोरोना की कुछ दवाओं का उपयोग मरीज की इम्युनिटी पर भाव डालता है और इस से भी ब्लैक फंगस के खतरे को बढ़ाते हैं।


ऐसे बरतें एहतियात

सामान्य व्यक्ति को दिन में दो बार ब्रश करना चाहिए।
पानी की बोतल को रोजाना साफ़ करना चाहिए।
सामान्य व्यक्ति की तरह प्रतिदिन मुंह साफ करें।
जिस व्यक्ति को आक्सीजन लगी है तो मेडिकल स्टाफ द्वारा उनके मुँह की सफाई की जानी चाहिए। यह सिर्फ कोविड में ही नहीं नॉन कोविड मरीजों के साथ करना होगा।

क्या है उपचार


ये संक्रमण त्वचा से शुरू हो कर शरीर के कई भागों में फैल सकता है। उपचार में सभी मृत और संक्रमित ऊतक को हटाया जाता है और इसके लिए सर्जरी की जाती है। कुछ मरीजों में के ऊपरी जबड़े या कभी-कभी आंख तक निकालनी पड़ जाती है। इसलिए इसके उपचार के लिए फिजिशियन के अलावा, न्यूरोलाजिस्ट, ईएनटी विशेषज्ञ, नेत्र रोग विशेषज्ञ, दंत चिकित्सक, सर्जन की टीम जरूरी है।

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