महाकाव्य महाभारत के अनुसार, भीम व राक्षसी हिडिंबा के पुत्र घटोत्कच की मृत्यु कर्ण के हाथों हुई थी। महाभारत युद्ध में शक्तिशाली घटोत्कच ने अकेले ही कौरवों की सेना में तबाही मचा दी थी। ऐसे में कर्ण को देवराज इंद्र से मिले दिव्यास्त्र का प्रयोग घटोत्कच वध के लिए करना पड़ा था। इस प्रकार अर्जुन के प्राणों की रक्षा हो सकी थी। लेकिन इस स्टोरी में हम आपको घटोत्कच से जुड़ी ऐसी रोचक बातें बताने जा रहे हैं, जिसे बहुत कम लोग जानते हैं।

घटोत्कच का रथ
महाभारत के द्रोणपर्व के मुताबिक, घटोत्कच के रथ में आठ पहिए लगे थे। घटोत्कच का रथ चलते समय बादलों के समान गंभीर आवाज करता था। उसके रथ पर जो झंडा लगा था, उस पर गिद्ध बना हुआ था। घटोत्कच के रथ में सौ बलवान घोड़े जुते थे। घोड़ों की आंखें लाल थी तथा उनके कंधों पर लंबे-लंबे बाल थे। विरूपाक्ष नामक राक्षस उस रथ का सारथी था। घटोत्कच का रथ रीछ की खाल से मढ़ा था। इस शक्तिशाली रथ पर सभी प्रकार के अस्त्र-शस्त्र रखे हुए थे।

लंका में राजा विभिषण से मिला था घटोत्कच
महाभारत के दिग्विजय पर्व में उल्लेखित है कि जब राजा युधिष्ठिर ने राजसूय यज्ञ किया था, तब भीम, अर्जुन, नकुल व सहदेव ने धरती के सभी राजाओं से कर वसूला था। कुछ राजाओं ने आसानी से कर दे दिया था, तो कुछ को युद्ध में पराजित कर टैक्स वसूलना पड़ा था।

इसी क्रम में सहदेव ने घटोत्कच को लंका जाकर राजा विभीषण से कर लेकर आने को कहा। घटोत्कच अपनी मायावी शक्ति से तुरंत लंका पहुंच गया। राजा विभीषण को घटोत्कच ने अपना पूरा परिचय दिया तथा आने का कारण बताया। घटोत्कच की बात सुनकर विभीषण अति प्रसन्न हुए तथा पर्याप्त धन आदि देकर लंका से विदा किया।

Related News