हाल ही में दशहरा उत्सव मनाया गया। दशहरा दुष्ट रावण को मारकर राम की जीत के दिन के रूप में मनाया जाता है। शास्त्रों में कहा गया है कि रावण की मृत्यु पंचक काल में हुई थी। जिसे सबसे अशुभ काल माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस अवधि के दौरान मृत्यु से परिवार में चार अन्य लोगों या रिश्तेदारों के 5 से 7 दिनों के भीतर मरने की संभावना बढ़ जाती है। आज हम आपको उसी पंचक समय के बारे में बता रहे हैं।

पंचक क्या है?

ज्योतिषी राजकुमार चतुर्वेदी के अनुसार 5 नक्षत्रों की अवधि पंचक मानी जाती है। रेवती नक्षत्र, उत्तर भाद्रपद, पूर्व भाद्रपद, शतभिषा पंचक के चार काल हैं। चंद्र ग्रहण के तीसरे नक्षत्र का इन चार अवधियों में मिलन पंचक कहलाता है। ऐसा माना जाता है कि पंचक काल में किए गए अशुभ कार्य को 5 दिनों में 5 बार दोहराया जाता है।

इन कार्यों को माना जाता है अशुभ-

पंचक काल में कई कार्य करना अशुभ माना जाता है। पांच सबसे बड़े काम हैं घर की छत बनाना, पटिया बिछाना, दक्षिण की यात्रा पर जाना, लकड़ी का सामान खरीदना, बिस्तर की मरम्मत करना या बिस्तर बनाना और शव का अंतिम संस्कार करना।

2 दिन पंचक दोष रहित -

पंचक काल में प्रत्येक आघात का अलग-अलग प्रभाव होता है। पंचक काल अशुभ होता है। लेकिन, ग्रहों के गोचर और ग्रहों की स्थिति के कारण, यह प्रभाव थोड़ा अधिक ही होता है। रविवार से शनिवार तक सात दिनों के लिए अलग पंचक काल बनता है। इन में बुधवार और गुरुवार को दोषमुक्त बताया गया है।

घास के पुतले का अंतिम संस्कार करना चाहिए -

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार पंचक काल में यदि किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है तो उसके शव का अंतिम संस्कार करने और उसी समय घास का पुतला बनाकर उसका अंतिम संस्कार करने की प्रथा है। जिससे पंचक के अशुभ प्रभावों से बचा जा सके।

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