भोलेनाथ को ऐसे ही देवों के देव महादेव नहीं कहा जाता है। शिव की महिमा ही अलग है, पुरे विश्व में, हर मंदिर में ज्योतिलिंग भोले नाथ का मंदिर जरूर बना होता है। जब भी हम किसी मंदिर में जाते है तो वो मंदिर चाहे किसी भी भगवान का क्यों न हो लेकिन उसी मंदिर में शिव की प्रतिमा जरूर मिलती है। कहा जाता है कि भगवान शिव के भक्त उन्हें प्रसन्न करने के लिए हर प्रयास करने की कोशिश करते है। जिससे भगवान शिव खुश होकर अपने भक्तों को उनकी मनोकामनाएं पूरी करते है। खास बात है कि महादेव जी के हर धाम, हर मंदिर में एक अलग ही जिज्ञासा है। इन्हीं में से एक है, भोलेनाथ का अमरनाथ मंदिर। हमारे धर्म में तीर्थ स्थान में भोलेनाथ का अमरनाथ मंदिर बहुत फैमस और जरुरी माना गया है। कहा जाता है कि यहां स्वयं भगवान शिव विराजते है। यहां शिव की अद्धभुत माया है। क्योंकि यहां पहाड़ियों के बिच बर्फीली बूंदो से हिम शिवलिंग विराजमान है, जो खुद बनता है।

शिव की अद्धभुत चमत्कारी माया को देखने यहां हर समय लाखों श्रद्धालु दर्शन के लिए आते है। यहां आना भी अपने आप में बड़ी बात है। क्योंकि यहां तक आने का रास्ता ही कुछ इस तरह का है।
यहां तक पहुंचने वाले रास्ते से जुड़ी कई ऐसी बाते है, जिनसे आप ने शायद ही आज तक सुनी होंगी। यहां तक खुद भोलेनाथ की आने की कहानी अलग है।

ऐसे पहुंचे भोलेनाथ यहां -
माता पार्वती ने महादेव से पूछा कि ऐसा क्यों है , की आप अमर भी है और अजर भी। इस बात पर महादेव , माता पार्वती के सवाल का जवाब देना ठीक नहीं समझा लेकिन जब वह नहीं मानी तो उन्होंने बताना शुरू किया।
कहा जाता है कि इस रहस्य को बताने के लिए भगवान शिव एकदम एकांत को तलाशते हए वह माता पार्वती के साथ आगे बढ़ते चले गए। लेकिन रास्ते में जाते हुए शिव ने अपनी हर चीज को रास्ते में छोड़ते हुए चलते गए।


इस तरह सबसे पहले भगवान शिव ने अपने वाहन नंदी को छोड़ा, नंदी को जिस जगह पर छोड़ा उसे पहलगाम कहा गया। यहीं से अमरनाथ यात्रा की शुरुआत हुई है। यहां से कुछ दूर जाने के बाद शिव जी ने अपने माथे से चंद्रमा को छोड़ा, जिसे चंदनवाड़ी कहा जाता है। इसके बाद गंगा को छोड़ा , इसे पंचतरणी कहा जाता है। अब इस बार शिव ने गले के सांप को छोड़ा, जिसे आज शेषनाग कहां जाता है। इसके बाद अमरनाथ यात्रा का अगला पड़ाव गणेश टॉप , यहां शिव ने
अपने पुत्र गणेश को छोड़ा , इसे आज गणेश टॉप कहा जाता है। इन पांच चीजों को छोड़कर भगवान शिव ने माता पार्वती के साथ यहां अमरनाथ में प्रवेश किया। उन्होंने अपने जीवन के उस गूढ रहस्यों की कथा यहां से कहनी शुरू की दी। इसलिए इस आज अमरनाथ के धाम तक जाने के लिए ये सारे तीर्थ स्थान को पार करके यहां जाना पड़ता है।

Related News