नए शोध में दावा किया गया है कि पिछले 46 सालों में दुनिया भर में शुक्राणुओं की संख्या में 50 प्रतिशत की गिरावट आई है। लेकिन हाल के वर्षों में इसमें तेजी से गिरावट आई है। इस शोध में भारत समेत करीब 23 देशों को शामिल किया गया था। वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि अगर इस समस्या को गंभीरता से नहीं लिया गया तो निकट भविष्य में मानव अस्तित्व को खतरा हो सकता है।

यह शोध अंतरराष्ट्रीय स्तर पर किया गया था जिसमें वैज्ञानिकों की कई टीमों ने भाग लिया था। इस बीच, उन्होंने 53 देशों के 57,000 से अधिक पुरुषों के शुक्राणु के नमूनों के आधार पर 223 अध्ययन किए। इसमें दक्षिण अमेरिका, एशिया और अफ्रीका के देश शामिल हैं जहां ऐसा अध्ययन पहले कभी नहीं किया गया। अध्ययन में यह भी कहा गया है कि यह पहली बार था जब इन क्षेत्रों के लोगों का अध्ययन किया गया और यहां के लोगों में कुल शुक्राणुओं की संख्या में भी कमी देखी गई। इस तरह के पिछले शोध उत्तरी अमेरिका, यूरोप और ऑस्ट्रेलिया में किए गए हैं और वहां इसी तरह के आंकड़े पाए गए हैं।

शोध में शामिल हिब्रू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर हाग्गै लेविन ने समाचार एजेंसी पीटीआई को बताया, "भारत में गिरावट अधिक स्पष्ट है।" यहां से हमें काफी अच्छा डेटा मिला, जिस रिसर्च में हमने पाया कि भारत में भी स्पर्म काउंट कम हुआ है। हालांकि यह पूरी दुनिया में एक जैसा है। खराब जीवनशैली और पर्यावरण में मौजूद खतरनाक रसायन शुक्राणु की गुणवत्ता में गिरावट के मुख्य कारणों में से एक हैं।"

सभी के लिए स्वच्छ वातावरण की वकालत करते हुए उन्होंने कहा, "मनुष्य सहित दुनिया की हर प्रजाति को संरक्षित करने की आवश्यकता है। उन्हें स्वच्छ और स्वस्थ वातावरण प्रदान करना होगा। साथ ही, प्रजनन क्षमता को प्रभावित करने वाले कारकों को हटाया जाना चाहिए।

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