दोस्तों, अजमेर आने वाले देशभर के जायरीन दरगाह पर जियारत करने के बाद सोहन हलवे का प्रसाद अपने घर ले जाना कभी नहीं भूलते हैं। दरअसल खाने के शौकीनों को अजमेर का सोहन हलवा बहुत पसंद आता है। सोहन हलवा एक ऐसी मिठाई है, जो दो महीने बाद भी खराब नहीं होती है। बताया जाता है कि बादशाह अकबर के जमाने से ही सोहन हलवे का प्रचलन है। कहते हैं कि बादशाह अकबर जब भी किसी लंबी यात्रा पर निकलते थे, तब स्वयं तथा अपनी सेना के लिए इसी तरह की खाद्य सामग्री अपने साथ रखा करते थे।

गजक और तिलपटटी
सर्दी के मौसम में ब्यावर शहर में बनने वाली गजक, रेवड़ी व तिलपट्टी अजमेर में काफी मशहूर है। तिलपट्टी में पिस्ता एवं अन्य ड्राईफ्रूट्स भी डाले जाते हैं।

चवन्नीलाल हलवाई के कचौड़े
दोस्तों, आपको बता दें कि अजमेर जिले में मौजूद नसीराबाद कस्बे के बेहद मजेदार और चटपटे स्वाद वाले कचौड़े पूरे अजमेर में मशहूर है। खासकर चवन्नीलाल हलवाई के कचौड़े तो चालीस के दशक से ही खूब बिकते हैं। ये कचौड़े मुख्य रूप से दाल और आलू के बनते हैं। एक कचौड़े का वजन करीब 600 ग्राम होता है। यह कचौड़े 170 रुपए किलो के हिसाब से बिकते हैं।

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