हिंदू धर्म शास्त्रों के मुताबिक, देवराज इन्द्र के स्वर्ग में 11 अप्सराएं थी। इन अप्सराओं के नाम क्रमश: कृतस्थली, पुंजिकस्थला, मेनका, रम्भा, प्रम्लोचा, अनुम्लोचा, घृताची, वर्चा, उर्वशी, पूर्वचित्ति और तिलोत्तमा है। इन सभी अप्सराओं की प्रधान अप्सरा रम्भा थीं।

पौराणिक शास्त्रों के अनुसार अप्सरा देवलोक में रहने वाली अनुपम, अति सुंदर, अनेक कलाओं में दक्ष, तेजस्वी और अलौकिक दिव्य स्त्री है। शास्त्रों में उल्लेख मिलता है कि देवी, परी, अप्सरा, यक्षिणी, इन्द्राणी और पिशाचिनी आदि कई प्रकार की स्त्रियां हुआ करती थीं। इनमें से अप्सराओं को सबसे सुंदर और जादुई शक्ति से संपन्न माना जाता है। हांलाकि अलग-अलग हिंदू धर्मग्रंथों में अप्सराओं की संख्या 108 से लेकर 1008 तक बताई गई है।

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कुछ अन्य अप्सराओं के नाम इस प्रकार हैं- कृतस्थली, प्रम्लोचा, अनुम्लोचा, वर्चा, पूर्वचित्ति, अम्बिका, अलम्वुषा, अनावद्या, अनुचना, अरुणा, असिता, बुदबुदा, चन्द्रज्योत्सना, देवी, घृताची, गुनमुख्या, गुनुवरा, हर्षा, इन्द्रलक्ष्मी, काम्या, कर्णिका, केशिनी, क्षेमा, लता, लक्ष्मना, मनोरमा, मारिची, मिश्रास्थला, मृगाक्षी, नाभिदर्शना, पूर्वचिट्टी, पुष्पदेहा, रक्षिता, ऋतुशला, साहजन्या, समीची, सौरभेदी, शारद्वती, शुचिका, सोमी, सुवाहु, सुगंधा, सुप्रिया, सुरजा, सुरसा, सुराता, उमलोचा, शशि, कांचन माला, कुंडला हारिणी, रत्नमाला, भू‍षणि आदि।

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इस अप्सरा को देख मोहित हो जाते थे ऋषिगण

कहा जाता है कि देवराज इंद्र के 11 प्रमुख अप्सराओं में से एक घृताची अप्सरा भी बहुत प्रसिद्ध थी। घृताची अप्सरा को देखते ही ऋषिगण मोहित हो जाते थे। भरद्वाज ऋषि और घृताची के बीच बने संबंधों के फलस्वरूप द्रोणाचार्य का जन्म हुआ था।

कहा जाता है कि विश्वकर्मा से भी घृताची के पुत्र हुए थे। महर्षि च्यवन के पुत्र प्रमिति ने घृताची के गर्भ से रूरू नामक पुत्र उत्पन्न किया था। घृताची की खूबसूरत काया को निहारने मात्र से महर्षि व्‍यास काम आसक्त हो गए थे, जिसके चलते शुकदेव उत्‍पन्‍न हुए।

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