महाभारत की बहुत सी कथा है , जिसके बारे में हम नहीं जानते है उनमे से है गांधारी की, गांधारी महाभारत के सबसे महत्वपूर्ण किरदारों में से एक थी। उसने शिव की कठोर आराधना की थी और इसी के चलते उसे एक वरदान मिला था कि वह अपने आँखों से पट्टी हटा कर जिसे भी नग्न अवस्था में देखेगी तो उसका शरीर वज्र के समान हो जाएगा।


अपनी आंखों की पट्टी खोलकर गांधारी ने अपने बेटे दुर्योधन के शरीर को वज्र का करना चाहा। गांधारी अपने पुत्र दुर्योधन से कहती है कि हे पुत्र गंगा जाकर स्नान कर आओ और वहां से सीधे मेरे पास आओ किंतु ऐसे ही जैसे तुम जन्म के समय थे। तब दुर्योधन कहता है नग्न माताश्री? गांधारी कहती है कि हां मैं तुम्हारी मां हूँ और अपनी मां से किसी तरह की कोई लज्जा नहीं करनी चाहिए। अपनी माता की आज्ञा करना दुर्योधन अपना कर्तव्य समझते हैं और स्नान करके मां के समक्ष आ रहे होते हैं।


लेकिन उन्हें श्रीकृष्ण मिलते हैं और उन्हें देख श्रीकृष्ण कहते हैं कि आप इस अवस्था में? आप अपने कपडे कहाँ भूल कर आ गए? तब दुर्योधन कहते हैं कि माँ ने मुझे इसी अवस्था में अपने सामने बुलाया है। इस बात पर श्रीकृष्ण हसने लगते हैं और कहते हैं कि माना आप उनके पुत्र हैं लेकिन अब आप वयस्क हो चुके हैं और इस अवस्था में कोई पुत्र अपनी मां के सामने नहीं जाता।

श्रीकृष्ण ने जानबुज के उन्हें इस असमंसज में डाला था। दुर्योधन इसके बाद अपने गुप्तांग पर केले के पत्ते बांध लेता है और कहता है कि मैं स्नान कर के आ गया हूँ माता। गांधारी कहती है ठीक है मैं कुछ पलों के लिए अपनी आँखों की पट्टी खोल रही हूँ। वह अपनी आँखों की पट्टी खोलती है तो उसकी आँखों की रौशनी दुर्योधन के शरीर पर पड़ती है। उसका शरीर वज्र के मसान कठोर हो जाता है लेकिन गुप्तांग पर वह पत्ते बांध कर रखता है इसलिए वो हिस्सा दुर्बल रह जाता है। गांधारी दुर्योधन से इस तरह आने का कारण पूछती है तो दुर्योधन कहते हैं कि मैं अपनी मां के सामने निर्वस्त्र कैसे आता।


दुखी होकर वह पुन: अपनी आंखों की पट्टी बांध लेती हैं। वह कहती है कि मेरी दृष्टि पड़ने से तुम्हारा शरीर वज्र के समान कठोर हो गया है लेकिन जिस हिस्से पर दृष्टि नहीं पड़ी वह दुर्बल रह रह जाएगा। अगर तुम ऐसा नहीं करते तो अजेय हो जाते। यह सुनकर दुर्योधन कहता है कि तो मैं ये केले के पत्ते हटा देता हूं माताश्री। तब गांधारी कहती है कि मैं कोई मायावी नहीं हूं। मैं अपनी शक्ति, ममता और आस्था का इस्तेमाल एक बार ही कर सकती थी।

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