मानसिक बीमार इंसान को धीरे - धीरे दीमक की तरह खाने लगती है। इंसान इस बीमारी में क्या से क्या बन जाता है। लेकिन एक सामान्य इंसान मानसिक स्वास्थ्य संस्थानों में रह रहे मरीजों के साथ होने वाले दुर्व्यवहार को नहीं जान सकता है। 20वीं शताब्दी में एक महिला पत्रकार की जिंदादिली ने इन संस्थानों के ऐसा राज खोले जिसने दुनिया को हिला कर रख दिया। 19वीं शताब्दी की वो महिला पत्रकार जिसने महिला मनोरोग अस्पतालों की भयानक स्थिति को दुनिया के सामने लाने के लिए पर अपनी जान पर खेलकर पत्रकारिता की थी। उस समय वे खुद पागल बनकर 10 दिनों तक पागलखाने में रहीं थी। इस पत्रकार का नाम नेली ब्लाइ था इसने 1887 में लोगों को पागलों की व्यथा का अंदाजा करवाया था।

उस समय में न्यूयॉर्क विश्व समाचार पत्र के लिए एक अंडरकवर असाइनमेंट करने के लिए नेली ने हाँ कर दी थी। इसमें उनका उदेश्य न्यूयॉर्क में ब्लैकवेल द्वीप पर महिलाओं के पगलखाने की भयानक स्थितियों की जांच करना था। बाद में नेली ने पूरा अनुभव टेन डेज़ इन ए मैड-हाउस ’नामक अपनी पुस्तक में प्रकाशित किया। पागलखाने में रहने के लिए, नेली ने खुद एक 'पागल औरत' के रूप को धारण कर लिया था। ये उसके लिए बिल्कुल भी आसान नहीं था।
वह पूरा दिन शीशे के सामने पागल बनने की एक्टिंग करती , इसके साथ ही उसने नहाना भी बंद कर दिया था। जब नेली को खुद पर विश्वास हो गया कि वे वहां रुक सकती है। तब नेली ने ब्राउन नाम की महिला बन कर पागलखाने में खुद को पंजीकृत करके अपना स्टिंग ऑपरेशन शुरू कर दिया। नेली ने 10 दिन पागलखाने में बिताए और जो कुछ उन्होंने देखा वह उसके लिए किसी सदमे से कम नहीं था।


उसने वहां देखा कि बुरी तरीके से रोगियों को यातनाएं दी जा रही है। वहां मरीजों को सर्दी में अतिरिक्त कपडे नहीं दिए जाते थे और ठंड में छोड़ दिया जाता था।दिए गए आदेशों का पालन न करने पर महिलाओं को लगातार मारा जाता था। नेली ने बताया कि महिलाओं की सुरक्षा के लिए कोई सुरक्षा उपाय नहीं किए गए थे। उचित देखभाल के बजाय रोगियों को रस्सियों में बांध दिया जाता था। इसके अलावा भी कई साड़ी सजा उन रोगियों को वहां मिल रही थी जो बिल्कुल अनावश्यक थी। नेली के इस अनुभव ने नेली को ही पागल बना दिया था। वे इस सजा और माहौल से कई दिनों तक बाहर नहीं निकल पायी थी।

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