कोरोना महामारी की शुरुआत के दौरान लोगों में इस बीमारी का डर ऐसा था कि देश में एंटीबायोटिक दवाओं की खरीद काफी बढ़ गई थी। इन दवाओं का उपयोग बुखार, गले में खराश, जीवाणु संक्रमण और त्वचा संक्रमण के इलाज के लिए किया जाता है। हालांकि, इन एंटीबायोटिक दवाओं को ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया ने भी मंजूरी नहीं दी थी। लेकिन कोविड के डर से लोगों ने दवाएं खरीदी और इस्तेमाल कीं। लैंसेट रीजनल हेल्थ जनरल साउथ ईस्ट एशिया की रिपोर्ट के मुताबिक 2019 में देश में 500 करोड़ एंटीबायोटिक्स की खपत हुई।

अध्ययन में बताया गया कि सबसे अधिक इस्तेमाल की जाने वाली दवा एज़िथ्रोमाइसिन थी। यह 500 मिलीग्राम की गोली है। जो एंटीबायोटिक का काम करता है। देश में करीब 8 फीसदी लोगों ने इस दवा का सेवन किया। डॉक्टरों का कहना है कि एज़िथ्रोमाइसिन दवा कई तरह के संक्रमणों को नियंत्रित करती है। यह निमोनिया, फेफड़ों के संक्रमण और कई तरह की एलर्जी से बचाता है। हालांकि, रिपोर्ट में कहा गया है कि लोगों ने बिना सोचे-समझे और इन दवाओं के साइड इफेक्ट के बारे में जाने बिना ही इन दवाओं का सेवन कर लिया।

इस शोध के प्रमुख चिकित्सक ने कहा है कि इन दवाओं का प्रयोग सावधानी से करना चाहिए। इन गोलियों का सेवन तभी करना चाहिए जब शरीर में कोई अनजाना बैक्टीरिया घुस गया हो या मरीज की जान को खतरा हो। इन दवाओं का उपयोग सामान्य जीवाणु संक्रमण या सामान्य एंटीबायोटिक दवाओं के रूप में नहीं किया जाना चाहिए। शफी ने कहा कि शोध से पता चलता है कि इनमें से केवल 45 प्रतिशत एंटीबायोटिक्स केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन के मानकों का अनुपालन करते हैं। कई मामलों की सलाह के न करें।

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