दुनिया में ऐसे बहुत से देव स्थल है जिनकी मान्यता अनोखी है। लेकिन आज हम शक्तिपीठ माता के श्रीयंत्र का स्वरूप छिन्नमस्तिका मंदिर की बात कर रहे है, यह मंदिर दामोदर-भैरवी संगम के किनारे स्थापित है। मंदिर में स्‍थापित माता की प्रतिमा में उनका कटा सिर उन्हीं के हाथों में है, और उनकी गर्दन से रक्त की धारा प्रवाहित होती रहती है। जो दोनों और खड़ी दोनों सहायिकाओं के मुंह में जाता है। शिलाखंड में देवी की तीन आंखें हैं। इनका गला सर्पमाला और मुंडमाल से शोभित है।

कहते है, इस मंदिर में मन्नते मांगने के लिए लोग रक्षासूत्र में पत्थर बांधकर पेड़ व त्रिशूल में लटकाते हैं, उसके बाद मन्नत पूरी हो जाने पर उन पत्थरों को दामोदर नदी में प्रवाहित करने की परंपरा है।

यहां हर साल नवरात्रि के समय बड़ी संख्या में साधु-संत और श्रद्धालु माता के दर्शन के लिए आते हैं। मंदिर में 13 हवन कुंडों में विशेष अनुष्ठान कर सिद्धि की प्राप्ति करते हैं। मंदिर रजरप्पा जंगलों से घिरा हुआ है। जहां दामोदर व भैरवी नदी का संगम भी है। शाम होते ही पूरे इलाके में सन्नाटा पसर जाता है। लोगों का मानना है कि मां छिन्नमिस्तके यहां रात्रि में विचरण करती है।

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