होली तो असल में होलीका दहन का उत्सव है जिसे बुराई पर अच्छाई की जीत के रुप में मनाया जाता है। यह त्यौहार भगवान के प्रति हमारी आस्था को मजबूत बनाने व हमें आध्यात्मिकता की और उन्मुख होने की प्रेरणा देता है। इस बार बुधवार 20 मार्च को 9 बज कर 28 मिनट से रात्रि 11:58 तक होलिका दहन किया जा सकता है। सभी लोग अपनी क्षेत्र परंपरा के अनुसार होलिका दहन करेंगे। वैसे तो माना जाता है कि भद्रा में होलिका दहन नहीं होना चाहिए क्योंकि ऐसा करने से जनसमूह का नाश होता है।

होलिका की पूजन विधि: होलिका दहन से पहले होली का पूजन किया जाता है। पूजा सामग्री में एक लोटा गंगाजल यदि उपलब्ध न हो तो ताजा जल भी लिया जा सकता है, रोली, माला, रंगीन अक्षत, गंध के लिये धूप या अगरबत्ती, पुष्प, गुड़, कच्चे सूत का धागा, साबूत हल्दी, मूंग, बताशे, नारियल एवं नई फसल के अनाज गेंहू की बालियां, पके चने आदि।

क्यों होता है होलिका दहन: शास्त्रों के अनुसार होली में रंग खेलने से पहले बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक अग्नि की पूजा की जाती है। भुना हुआ धान्य या अनाज संस्कृत में होलका कहलाता है। इसी अनाज से हवन किया जाता है, और उसकी राख से तिलक किया जाता है। जिसके बाद वाले दिन हम रंग से होली खेलते है।

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