हनुमान जी अशोक वाटिका से माता सीता को रावण की कैद से छुड़ाकर क्यों नहीं ला सके ?
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रामायण के मुख्य किरदारों में एक नाम हनुमान जी का भी है। भगवान श्रीराम के जीवन में पवनपुत्र हनुमान जी की अहम भूमिका रही। हिंदू धर्मग्रंथों के मुताबिक, हनुमान जी भगवान शिव के ग्यारहवें अवतार के रूप में सर्वत्र पूजनीय हैं।
हिंदू धर्म में हनुमान जी को बल और बुद्धि का देवता माना गया है। देश के कई हनुमान मंदिरों में आप उनकी मूर्ति को पर्वत उठाए तथा राक्षस का मान मर्दन करते हुए आसानी से देख सकते हैं। ठीक इसके विपरीत श्रीराम मंदिरों में हनुमान जी भगवान राम के चरणों में मस्तक झुकाए बैठे हैं। मान्यता है कि भगवान शिव भी प्रभु श्रीराम का स्मरण करते हैं इसलिए उनके अवतार हनुमान को भी राम नाम अधिक प्रिय है। ऐसे में कोई भी रामकथा हनुमान जी के बिना पूरी नहीं होती।
हनुमान जी से जुड़े एक प्रसंग के मुताबिक, एक बार वे अपनी मां अंजनी को रामायण की कथा सुना रहे थे। उनकी कथा से प्रभावित होकर मां अंजनी ने अपने पुत्र हनुमान से कहा कि तुम इतने शक्तिशाली हो कि तुम पूंछ के एक वार से पूरी लंका को उड़ा सकते थे, रावण को मार सकते थे और मां सीता को छुड़ा कर ला सकते हो फिर तुमने ऐसा क्यों नहीं किया? अगर तुम ऐसा करते तो युद्ध में नष्ट हुआ समय बच जाता?
इस प्रश्न का उत्तर हनुमान जी बड़ी विनम्रता के साथ अपनी माता अंजनी को देते हैं। हनुमान जी कहते हैं कि प्रभु श्रीराम ने मुझे ऐसा करने के लिए नहीं कहा था। मां, मैं उतना ही करता हूं, जितना प्रभु श्रीराम मुझसे कहते हैं। वे अच्छी तरह से जानते हैं कि मुझे क्या करना है। इसलिए मैं अपनी मर्यादा का उल्लंघन कभी नहीं करता। हिंदू जनमानस तथा अनेक धर्मग्रंथों में हनुमान जी की प्रभु श्रीराम के प्रति अगाध प्रेम और श्रद्धा का वर्णन मिलता है।