प्राचीन ग्रंथो में कौवे को एक विशेष पक्षी के रूप में बताया गया है। कौवों की मौत कभी बिमारी से या वृद्ध होकर नहीं होती है। कौवे की मौत हमेशा आकस्मिक ही होती है और जब एक कौआ मरता है। तो उस दिन उस कौवे के साथी खाना नहीं खाते है। इसलिए इस पक्षी का श्राद्ध कर्म विधि में भी विशेष महत्व होता है।

कहते है ये पक्षी यमराज का दूत होता है, जो श्राद्ध में आकर अन्न की थाली देखकर यम लोक जाकर हमारे पितृ को श्राद में परोसे गए भोजन की मात्रा और खाने की वस्तु को देखकर हमारे जीवन की आर्थिक स्थिति और सम्पन्नता को बतलाता है।

इसलिए श्राद्ध कर्म विधि में कौवें को भोजन दिया जाता है। कहते ऐसा करने से पितृ की आत्मा शांत होती है, श्राद्ध कर्म विधि में कौवे को भोजन करना शुभ माना जाता है।

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