‘डॉग्स एंड इंडियंस नॉट अलाउड’ देख बंगाल की मणिकर्निका ‘प्रीतिलता वद्देदार’ ने फूंक दिया था क्लब
प्रीतिलता वद्देदार, जिन्हें अंग्रेजों के शासन में जीना तो दूर, उनके हाथों मरना तक गवारा न था. इसीलिए शहीद तो हुईं, लेकिन अंग्रेजों की गोली या फांसी पर चढ़ कर नहीं, बल्कि खुद से साइनाइड की गोली खाकर. वह झांसी की रानी मणिकर्निका (लक्ष्मीबाई) से काफी प्रभावित थीं. उनका बचपन का नाम भी ‘रानी’ था.
मेधावी छात्रा और एक निर्भीक लेखिका थीं प्रीतिलता
प्रीतिलता का जन्म 5 मई, 1911 को चटगांव के में हुआ था. उनके पिता क्लर्क थे. 1929 में ढाका के इडेन कॉलेज से 12वीं की परीक्षा दी, जिसमें वह पांचवें स्थान पर आयीं. 1931 में बेथून कॉलेज से दर्शन शास्त्र से स्नातक हुईं, लेकिन विद्रोही तेवर के कारण कलकत्ता विश्वविद्यालय के ब्रिटिश अधिकारियों ने डिग्री को रोक दी. हालांकि 80 वर्ष बाद 2012 में मरणोपरांत प्रीतिलता का डिग्री सर्टिफिकेट तत्कालीन राज्यपाल एमके नारायणन ने जारी कर उन्हें सम्मान दिया.
कॉलेज में आयीं क्रांतिकारियों के संपर्क में
बेथून कॉलेज में पढ़ाई के दौरान ही वह क्रांतिकारियों के संपर्क में आ चुकी थीं. वह परिवार की आर्थिक सहायता के लिए स्कूल में पढ़ाने लगीं, लेकिन मकसद देश को स्वतंत्र कराना था. उन्होंने क्रांतिकारी निर्मल सेन से युद्ध का प्रशिक्षण लिया. पाठशाला में नौकरी के दौरान ही उनकी भेंट प्रसिद्ध क्रांतिकारी सूर्य सेन से हुई. सूर्य सेन उस समय इंडियन रिपब्लिकन आर्मी (आइआरए) चला रहे थे और चटगांव विद्रोह का सफल नेतृत्व किया था. प्रीतिलता उनके दल की सक्रिय सदस्य बन गयीं.
चकमा देकर 40 बार जेल में क्रांतिकारियों से मिल कर लौटीं
सूर्यसेन अज्ञातवास में थे और उनका साथी रामकृष्ण विश्वास कलकत्ता के अलीपुर जेल में. उन्हें फांसी की सजा सुनायी गयी थी. रामकृष्ण से मिलना आसान नहीं था. इसके बावजूद प्रीतिलता नें उनसे कारागार में एक-दो बार नहीं, बल्कि 40 बार मिलीं और किसी को भनक भी नहीं लगी.कैप्टन कैमरान की हत्या में सूर्यसेन का साथ दिया एक सभा के दौरान पूर्वी बंगाल के घलघाट में क्रांतिकारियों को ब्रिटिश पुलिस ने घेर लिया, जिसमें अपूर्व सेन, निर्मल सेन, प्रीतिलता और सूर्यसेन भी थे. उस लड़ाई में प्रीतिलता ने सूर्यसेन का साथ दिया. उसमें अपूर्व सेन और निर्मल सेन शहीद हो गये, जबकि सूर्य सेन की गोली से अंग्रेज अधिकारी कैप्टन कैमरान मारा गया. सूर्यसेन और प्रीतिलता अकेले पड़ गये, दोनों ने वहां से अंग्रेजों की नजर से बच निकलें.
पंजाबी पुरुष के वेश में पहुंची थी क्लब को उड़ाने
प्रीतिलता ने जब चटगांव के पहाड़तली यूरोपीय क्लब में एक तख्ती देखी तो उनका खून खौल गया. उस तख्ती पर लिखा था ‘डॉग्स एंड इंडियंस नॉट अलाउड’. वह देशवासियों के लिए अपमानबोध करनेवाला था. तख्ती का जिक्र उन्होंने जाकर मास्टर दा सूर्यसेन से किया. वह क्लब अंग्रेजों की अय्याशी का अड्डा था. वे वहां शराब पीकर नांचते-गाते हैं. सूर्यसेन ने प्रीतिलता से कहा उस क्लब को उड़ा दो.
प्रीतिलता पंजाबी पुरुष के वेश में 24 सितंबर 1932 की रात हथियारों से लैस होकर कुछ साथियों के साथ क्लब के पास पहुंची और क्लब की खिड़की पर भारी क्षमता वाला बम रख दिया. क्लब में जोरदार विस्फोट हुआ. वहां आग लग गयी. वहीं ये विद्रोही पिस्तौल से दनादन गोलियां भी दाग रहे थे. इस घटना में 13 अंग्रेज जख्मी हो गये, जिसमें एक की मौत भी हुई.
जवाबी कार्रवाई में एक गोली प्रीतिलता को लगी. प्रीतिलता घायल अवस्था में भागीं, परंतु जब लगा कि वह या तो अंग्रेज पुलिस के हाथों पकड़ी जायेंगी या मार दी जायेंगी या फांसी पर लटका दी जायेंगी, तो उन्होंने अपने साथ लाया पोटेशियम सायनाइड खा लिया. प्रीतिलता के आत्म बलिदान के बाद अंग्रेज अधिकारियों को तलाशी में एक पत्र मिला, जिसमें लिखा था, ‘चटगांव शस्त्रागार कांड के बाद जो मार्ग अपनाया जायेगा, वह भावी विद्रोह का प्राथमिक रूप होगा. यह लड़ाई भारत को पूरी स्वतंत्रता मिलने तक जारी रहेगी.’