सिनेमाघरों में रिलीज़ हो रही मेरा फौजी कॉलिंग मूल रूप से मानवीय पहलुओं और संवेदनाओं की एक भावुक कहानी है। देश के लिए जंग में जांबाज़ी दिखाते हुए शहीद होने वाले फौजियों के परिवारों को किन भावनात्मक कठिनाइयों और पड़ावों से गुज़रना पड़ता है, मेरा फौजी कॉलिंग उन्हीं भावनाओं को विभिन्न किरदारों के ज़रिए उकेरती है।

मेरा फौजी कॉलिंग की कहानी झारखंड के बुंडु ज़िले में सेट की गयी है। राजवीर सिंह फौज में लेफ्टिनेंट (रांझा विक्रम सिंह) है, जिसकी तैनाती कश्मीर के उरी क्षेत्र में है। घर पर मां (ज़रीना वहाब), पत्नी साक्षी (बिदिता बाग) और एक 6-7 साल की बेटी आराध्या है। राजवीर छुट्टी पर घर आने वाला है, जिसका सबसे अधिक इंतज़ार बेटी आराध्या को है।

आराध्या एक रात सपने में देखती है कि राजवीर को गोली लग गयी है। इसकी दहशत उसके दिलो-ज़हन में बैठ जाती है। तेज़ बुखार हो जात है। डॉक्टर बताता है कि आराध्या को पीटीएसडी यानी पोस्ट ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर है। पिता को सपने में मरता देख उसे गहरा सदमा लगा है। डॉक्टर की सलाह पर आराध्या की बात राजवीर से करवायी जाती है, जिसके बाद वो ठीक हो जाती है।

मगर, कुछ वक़्त बाद बेटी के जन्म दिन के जश्न के बीच राजवीर के शहीद होने की ख़बर आती है। आराध्या को यह ख़बर देना उसकी सेहत के लिए ठीक नहीं होता। लिहाज़ा, साक्षी बेटी से कहती है कि पिता का प्रमोशन हो गया है और वो भगवान के घर पर हैं, जहां बात नहीं हो सकती। बाल-मन इसे सच मान लेता है। बेटी का मन रखने के लिए साक्षी और राजवीर की मां सब कुछ सामान्य होने का नाटक करते हैं, जिसमें मेजर रॉय से लेकर गांव वाले तक साथ देते हैं। साक्षी मंगलसूत्र पहनती है और साज-श्रृंगार करके रहती है।

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