बॉलीवुड दुनिया का एक सफल उद्योग है और हम जानते हैं कि हर साल बॉलीवुड में कितनी फ़िल्में रिलीज होती है। लेकिन फिल्में हम जब थियेटर में देखने जाते हैं तो हमें फिल्म की मेकिंग के बारे में कुछ पता नहीं होता है। यह एक सोच समझ कर करने वाला काम है। स्क्रिप्ट राइटिंग से लेकर म्यूजिक और फिल्म के लिए कास्ट ढूंढ़ना, शूटिंग आदि काफी कठिन काम है। इसी प्रकार फिल्मों में एडल्ट सीन भी होते हैं। आज के समय में फिल्मों को हिट करने का यह एक खास तरीका है जो फिल्म निर्माता अपनाते हैं। इसके लिए हमारे देश में 'सेंट्रल बोर्ड ऑफ फिल्म सर्टिफिकेशन' (सीबीएफसी) नामक एक संस्थान है जो इस बात का फैसला करता है कि फिल्म को कौनसा सर्टिफिकेट दिया जाना चाहिए और क्या यह फिल्म वाकई देखने लायक है भी या नहीं।

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सीबीएफसी भारत में दर्शकों के लिए फिल्म को प्रमाणित करता है। जहाँ एक ओर फिल्मों में ऐसे सीन बढ़ते जा रहे हैं वहीं दूसरी ओर सीबीएफसी ने सेंसरशिप के लिए फिल्मों के प्रमाणीकरण के लिए अपने खास रूल्स को और भी कड़ा बना दिया है।

सेंसरशिप में किसी फिल्म को दर्शकों द्वारा थियेटर में देखने तक काफी कांट-छांट की जाती है। इसके बाद उस फिल्म को रिलीज़ करने से पहले उस फिल्म को सिनेमा से जुड़ें दिग्गज देखते है इसके आधार पर यह तय किया जाता है कि फिल्म को कौनसा सर्टिफिकेट देना है। सीबीएफसी द्वारा 4 तरह के सर्टिफिकेट दिए जाते है। आइये जानते हैं उन सर्टिफिकेट्स के बारे में।

यू - फैमिली फिल्मों को यू सर्टिफिकेट दिया जाता है। इसके अंतर्गत नाटक, रोमांस, शिक्षा, विज्ञान, एक्शन,फिक्शन आदि से जुड़ी फ़िल्में आती है। अधिकांश फिल्म निर्माता चाहते हैं कि उनकी फिल्म को यू सर्टिफिकेट ही मिले।

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यू/ए - यू/ए फिल्मों में थोड़ा बहुत एडल्ट कंटेंट हो सकता है। इन फिल्मों को 12 साल से छोटी उम्र के बच्चे अपने पेरेंट्स के साथ देख सकते हैं।

- जिन फिल्मों में एडल्ट सीन और भाषा की भरमार होती है उसे ए सर्टिफिकेट दिया जाता है। इन फिल्मों में से सीबीएफसी कई सीन को हटा भी सकता है और इन्हे 18 साल से अधिक उम्र के लोग ही देख सकते हैं।

एस - 'एस' सर्टीफिकेट वाली मूवीज आम जनता के लिए नहीं बनाई जाती है। इस तरह की फिल्में मुख्य रूप से डॉक्टरों, इंजीनियरों और वैज्ञानिकों जैसे क्षेत्र से जुड़े लोगों के लिए बनाई जाती हैं।

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