भारतीय सिनेमा में अभिनेता - अभिनेत्रियों की एक्टिंग और उनके फिल्म निर्माण को लेकर दिया जाने वाला सबसे चर्चित अवार्ड दादा साहेब फाल्के अवार्ड
है। इसकी नीव रखने वाले दादा साहेब फाल्के की आज पुण्यतिथि है। इनके नाम पर भी दादा साहेब फाल्के अवार्ड दिया जाता है। बहुत कम लोग जानते है कि दादा साहेब फाल्के का असली नाम धुंधिराज गोविन्द फाल्के था। इन्हें भारतीय फिल्मो का 'पितामह' भी कहा जाता है। दादा साहेब का निधन 16 फरवरी 1944 को हुआ था। दादा साहब ने भारत की पहली मूक फिल्म 'राजा हरिश्चंद्र' से सिनेमा जगत में डेब्यू किया था। आपको बता दे कि
दादा साहब ने बड़ौदा के सर जे. जे. स्कूल ऑफ आर्ट से अपनी स्कूली पढ़ाई पूरी की थी।

वह मंच के अनुभवी अभिनेता के एक शौकिया जादूगर थे। कला , फोटोग्राफी , एक्टिंग का बचपन से ही शौक था। उस समय 'राजा हरिश्चंद्र' का बजट 15 हजार रुपये था। दादा साहब फाल्के की आखिरी मूक फिल्म 'सेतुबंधन' थी। साल1969 में भारतीय सिनेमा के रचेता दादा साहब की सौंवीं जयंती पर इस पुरस्कार की शुरुआत की गयी थी। आज राष्ट्रीय स्तर का यह सर्वोच्च सिनेमा पुरस्कार, सिनेमा जगत में उल्लेखनीय योगदान के लिए दिया जाता है। दादा साहेब की याद में यह पुरस्कार हर साल दिया जाता है। खास बात है कि दादा साहेब एक्टिंग के साथ प्रोड्यूसर, डायरेक्टर और स्क्रीनराइटर भी थे। दादा साहेब ने अपने 19 साल लंबे करियर में 95 फिल्में और 27 शॉर्ट फिल्में की थी।

आज दादा साहब फाल्के अवार्ड भारतीय सिनेमा का सर्वोच्च प्रतिष्ठित पुरस्कार माना जाता है। यह सबसे पहले 1969 में देविका रानी चौधरी को दिया गया था और आखिरी बार विनोद खन्ना को इस पुरुस्कार से सम्मानित किया गया था। हर साल सूचना और प्रसारण मंत्रालय, राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार समारोह के मौके पर दादासाहेब फाल्के पुरस्कार देता है। इस पुरस्‍कार में एक गोल्ड लोटस मैडल - एक शाल और 10 लाख रूपये का नकद पुरुस्कार मिलता है। आपको बता दें कि दादा साहेब एक प्रिंटिंग का कारोबार करते थे लेकिन उसमे भरी नुकसान होने से उनका मन उझट गया। इसके बाद वे क्रिसमस के मोके पर इंग्लैंड में बनी फिल्म ‘ईसामसीह’ देखने गए थे। फिल्म देखने के साथ ही दादा साहेब ने निर्णय कर लिया था कि बस अब जिंदगी का मकसद फिल्मकार बनना ही है।

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