हमारे देश में परीक्षा में अच्छे अंक हासिल करना बहुत जरुरी होता है। जिस छात्र को परीक्षा में जितने अधिक अंक मिलते है, उसे उतना ही अधिक योग्य माना जाता है। यहाँ तक कि कई सरकारी परिक्षाओं के लिए स्कूल या कॉलेज स्तर पर निर्धारित अंक होना बहुत जरुरी होता है। लेकिन आपने कई बार आपने माता पिता को अपने बच्चों को 33 प्रतिशत अंक लाने के लिए कहते सुना होगा। क्या आपने कभी सोचा है कि परीक्षा में पास होने के लिए न्यूनतम 33 प्रतिशत अंक लाने का यह विचार कहाँ से आया? चलिए आज हम आपको इसके बारे में बताते है।

ये बात तो आप सभी जानते है कि प्राचीन भारत में शिक्षा के लिए गुरुकुल व्यवस्था थी लेकिन अंग्रेजो के आने के साथ ही यह व्यवस्था समाप्त होने लगी थी और इंग्लैंड के कई गवर्नर भारत में अंग्रेजी शिक्षा प्रणाली लागू करने पर विचार कर रहे है क्योंकि वे लोग भारत की शिक्षा प्रणाली को अच्छा नहीं मानते थे। इस वजह से वे भारत में अंग्रेजी शिक्षा को बढ़ावा देने लगे थे।

इसके बाद जब भारत में अंग्रेजी शिक्षा व्यवस्था लागू की गई तो सबसे बड़ी समस्या यह सामने आई कि भारत में पास होने के लिए न्यूनतम अंक सीमा क्या रखी जाए? चूँकि उस समय ब्रिटेन में पास होने के लिए न्यूनतम 66 प्रतिशत अंक लाना जरुरी था और अंग्रेजो का मानना था कि उनकी तुलना में भारतीयों की बुद्धि आधी होती है इसलिए उन्होंने भारत में पास होने के लिए न्यूनतम अंक 33 प्रतिशत तय किये। तभी से लेकर परीक्षा में पास होने के लिए 33 प्रतिशत न्यूमतम अंक की प्रथा यह चली जा रही है।

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