क्या आप गेटवे ऑफ इंडिया के बिना मुंबई और इंडिया गेट के बिना दिल्ली की कल्पना कर सकते हैं? ठीक वैसे ही, गंगा ढाबा के बिना जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) की कल्पना करना मुश्किल है। वर्तमान छात्र, जेएनयू से पासआउट हुए छात्र हर किसी के दिल की धड़कन है गंगा ढ़ाबा।


गंगा ढाबा जो कि साल 1984 से जेएनयू में चर्चा और बहस का केंद्र बिंदु रहा है वो हर जेएनयू में पढ़ने वाले छात्र के लिए खास है और हर किसी की यहां पढऩे के दौरान गंगा ढ़ाबा से अलग ही नाता बन जाता है।

जेएनयू या किसी अन्य कॉलेज के एक छात्र का कहना है कि "मैं पहले ग्रेटर नोएडा में पढ़ रहा था और विशेष रूप से गंगा ढाबा आया करता था। मैंने पहले इस जगह के बारे में और बाद में जेएनयू के बारे में सुना। जेएनयू के छात्र अमृत राज बताते हैं कि "यह ढाबा पूरी रात के लिए खुला रहता है और महीने के अंत में, जब हमारे पास पैसे कम होते हैं, तो यह हमारा hangout प्लेस बन जाता है।


इस जगह कितने ही साल चाहे कोई बिताए लेकिन जितने टाइम वो यहां रहता है उसके लिए गंगा ढ़ाबा एक अलग तरीके से उससे जुड़ जाता है। हर नए छात्र का यह पसंदीदा hangout प्लेस बनने में कोई देर नहीं लगती है। कॉलेज छोड़ने के बाद भी, कुछ छात्र यहां वापस आकर अपनी यादों को फिर से देख कर एक सुखद एहसास लेते हैं।


चाहे क्रिकेट मैच देखना हों या कोई जरूरी मुद्दों पर बातचीत हर तरह के काम यहीं पर किए जाते हैं। यहां बैठने के लिए कोई कुर्सियां ​​और टेबल नहीं है लेकिन सीमेंट और मलबे जैसी सामग्री से बनी सीटें हैं। यह चर्चाओं और बहस का एक केंद्र है, और वहां बस बैठकर भी आप बहुत कुछ सीख सकते हैं। परिसर के छात्रों का मानना ​​है कि किसी और चीज से अधिक, ढाबा उनकी संस्कृति का हिस्सा हैं।

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