जब कोई अपराधी बहुत घिनौना या ऐसा काम करता है जो माफ़ी के काबिल नहीं है तो उसे फांसी की सजा दी जाती है। लेकिन हम से बहुत से लोगों के मन में ये सवाल जरूर आता है कि आखिर फांसी की सजा सुबह 4 बजे ही क्यों दी जाती है? आइए जानते हैं।

ऐसा माना जाता है की अपराधी को दिन भर का इंतज़ार नहीं करना पड़े इसलिए उसे सुबह सुबह सजा दी जाती है जिस से उसके दिमाग पर असर ना पड़े। इसलिए अपराधी को सुबह उठाकर नित्य क्रिया से नीवृत होकर फांसी के लिए ले जाया जाता है। इसका दूसरा कारण ये भी है कि सुबह उठ कर जेल के कैदी और अन्य लोग अपने कामों में लग जाते हैं इसलिए सुबह ही कैदी को सजा दे दी जाती है जिस से उसका दूसरों पर भी कोई प्रभाव ना पड़े।

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फांसी की सजा देने के बाद मेडिकल टेस्ट, कई रजिस्टरों में एंट्री, और उसके बाद शरीर को परिवार वालों को सौंपना होता है जिसमे दिन भर का समय लग जाता है इस कारण सुबह फांसी दी जाती है ताकि ये सारे काम पूरे हो सकें।

फांसी के समय कौन – कौन मौजूद रहता है ?

फांसी देते समय जेल अधीक्षक, एग्जीक्यूटिव मजिस्ट्रेट और जल्लाद मौजूद रहते हैं।

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फांसी देने से पहले क्या कहता है जल्लाद ?

फांसी देने से पहले अपराधी से उसकी आखिरी ख्वाहिश पूछी जाती है जिसमे में जेल मैन्युअल के हिसाब से किसी भी चीज की मांग कर सकता है। फांसी देने से पहले जल्लाद कैदी के कान में कुछ बोलता भी है। वो कहता है कि मुझे माफ़ कर दिया जाए। हिन्दू भाइयों को राम – राम और मुसलमान भाइयों को सलाम।

फांसी देने के बाद 10 मिनट तक अपराधी को लटके रहने दिया जाता है और डॉक्टर्स ये चेक करते हैं कि व्यक्ति मर चूका है या नहीं और इसके बाद उसे नीचे उतार लिया जाता है।

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