UPSC ने कुछ समय पहले आईएएस परीक्षा प्री का परिणाम जारी कर दिया जिसके बाद मेन परीक्ष अब अगले महीने में होनी तय है। लाखों में से हजारों उम्मीदवारों ने परीक्षा के लिए क्वालिफाई किया है। आईएएस बनने की पूरी प्रक्रिया में ये चरण काफी अहम माना जाता है या फिर इसके बाद इंटरव्यू तो खौर सबसे बड़ा चरण ही है।

यूपीएससी समय समय पर आईएएस, आईपीएस और आईएफएस की भर्ती के लिए परीक्षा आयोजित करवाती है जिसमे लाखों की संख्या में कैंडिडेट्स भाग लेते हैं लेकिन इस परीक्षा को पास करना इतना आसान नहीं होता है। आईएएस बनने के लिए पहले प्रिलिमाइनरी एग्जाम क्लियर करना होता है इसके बाद मेन एग्जाम और इंटरव्यू होता है।

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इंटरव्यू के बाद भी कड़ी ट्रेनिंग से हो कर गुजरना होता है। ट्रेनिंग एक खास चरण होता है । सभी उम्मीदवारों की एक कठिन ट्रेनिंग होती है। आइए जानते हैं क्या और कैसे होती है अफसरों की ट्रेनिंग।

आईएएस अफसरों की ट्रेनिंग प्रोसेस

आईएएस परीक्षा पास करने के बाद इसको क्लियर करने वाले कैंडिडेट्स को खास ट्रेनिंग दी जाती है जो कि 21 महीने की होती है। इसमें 4 महीने की बेसिक ट्रेनिंग शामिल होती है और उसके बाद 2 महीने की एक और ट्रेनिंग होती है जिसमे व्यावसायिक बातों के बारे में सिखाया जाता है। 12 महीनों में जिलावार ट्रेनिंग भी दी जाती है जिसमे जिले की ध्यान में रखने योग्य बातों के बारे में सिखाया जाता है।

इन सब के बाद सभी कैंडिडेट्स को उनके कैडर स्टेट में फील्ड ट्रेनिंग के लिए भेजा जाता है। यहाँ पर कैंडिडेट्स को जिला अधिकारी के अंडर में ट्रेनिंग लेनी होती है। आइएएस अधिकारी एग्जाम क्लियर करने के बाद ट्रेनिंग मसूरी में लाल बहादुर शास्त्री एकेडमी में होती है।

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ट्रेनिंग प्रोसेस पूरा होने के बाद अफसरों को 21 महीने को प्रोबेशन पीरियड पूरा करना होता है। इसके बाद वे कलेक्टर बनते हैं।

आईएएस अफसर की जिम्मेदारियां

- क्षेत्र में सरकार के एजेंट के रूप में काम करना।

-जनता और सरकार के बीच मध्यवर्ती के रूप में कार्य करना।

- एसडीएम या एडीएम, जिलाधिकारी और मंडलायुक्त के रूप में राजस्व के मामलों की कोर्ट बनना।

- कानून और व्यवस्था बनाए रखना।

- केंद्र और राज्य सरकार की नीतियों को ज़मीनी स्तर पर लागू करना।

- केंद्रीय सचिवालय में कैबिनेट सचिव, संयुक्त सचिव, सचिव, अपर सचिव (अतरिक्त सचिव), राज्य सचिवालय में मुख्य सचिव, प्रमुख सचिव और पर मुख्य सचिव/विशेष मुख्य सचिव रहते हुए निति निर्माण में योगदान देना।

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