संत कबीर के ये 3 दोहे जिनसे मिलता हैं शांति और शिक्षा का जरुरी संदेश, जरूर पढ़े
इतिहास और साहित्य के क्षेत्र में रुचि रखने वाले लोग 'संत कबीर' को जरूर जानते होंगे। कबीर के दोहे जगत में फेमस हैं जिनसे कुछ ना कुछ सन्देश हमें प्राप्त होता हैं। चलिए संत कबीर के कुछ दोहे और उनकी व्याख्या के साथ इन्हें समझने का प्रयास करते हैं ...
दुख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय ... जो सुख में सुमिरन करे, दुख काहे को होय।
व्याख्या: इस दोहे का मतलब हैं, सुख में कोई याद नहीं करता। यदि सुख में याद किया जाएगा तो फिर परेशानी ही क्यों आएगी।
बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलया कोय ... जो मन खोजा आपना, तो मुझसे बुरा न कोय।
व्याख्या: कबीर जी के इस दोहे के माध्यम से कहना चाहते हैं, जब मैं पूरी दुनिया में खराब और बुरे लोगों को देखने निकला तो मुझे कोई भी बुरा नहीं मिला। इसके बाद मैंने खुद के भीतर खोजने की कोशिश की तो मुझे मुझसे बुरा कोई नहीं मिला।
बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर ... पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर।
व्याख्या: कबीर जी ने इस दोहे के जरिये कहा हैं कि, बड़ा होने के लिए विनम्रता होनी चाहिए । उन्होंने कहा कि जिस प्रकार खजूर का पेड़ ऊंचा होने के बावजूद न पंथी को छाया दे सकता है और ना ही उसके फल को आसानी से तोड़ा जा सकता हैं।