देश की कॉलेज और स्कूलों चाहे वो सरकारी हों या प्राइवेट इन सभी में फीस बढ़ोतरी को लेकर यहां पढ़ने वाले छात्रों और उनके माता-पिता को हमेशा से ही शिकायतें रही है। स्कूल मनमाने ढ़ंग से जब मन में आता है फीस बढ़ा देते हैं जिसका खामियाजा छात्रों को भुगतना पड़ता है। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने एक याचिका पर फैसला सुनाते हुए कहा कि सरकारी और प्राइवेट स्कूल या कॉलेज मनमाने ढंग से अपनी फीस नहीं बढ़ा सकते हैं।

आपको बता दें कि तमिलनाडु के अन्नामलाई यूनिवर्सिटी के 150 छात्रों ने 2013-2014 के शैक्षणिक सत्र के लिए एमबीबीएस कोर्स की फीस बढ़ाने के विरोध में कोर्ट में याचिका दायर की थी जिसके बाद ये फैसला सुनाया गया।

न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा और ललित के एक खंडपीठ का कहना था कि यूनिवर्सिटियों द्वारा इस तरह से फैसले 2003 के एससी संविधान खंडपीठ के फैसले का उल्लंघन कर रहा था, जिसने हर एक राज्य के लिए फीस फिक्सेशन पर एक स्वतंत्र समिति की नियुक्ति की थी जो एक सेवानिवृत्त उच्च न्यायालय के न्यायाधीश की अध्यक्षता में शैक्षणिक पर्यवेक्षण करने के लिए अनिवार्य काम करती है।

अन्नामलाई यूनिवर्सिटी 2013 में एक राज्य यूनिवर्सिटी बन गया और फीस निर्धारण पैनल की मंजूरी के बिना ही मेडिकल और कई कोर्स के लिए फीस कम और ज्यादा करने लग गया।

याचिकाकर्ताओं ने पहले यूनिवर्सिटी के खिलाफ मद्रास उच्च न्यायालय पहुंचे जिस दौरान उनसे सलाना 5.54 लाख तक की फीस ली जा रही थी। छात्रों का साफ तौर पर कहना था कि यूनिवर्सिटी ने फीस फिक्सेशन पैनल की मंजूरी के बिना ही फीस को बढ़ा दिया जो कि गलत है। इसके बाद छात्रों ने एससी जाने का विचार किया।

हाईकोर्ट से मिली फटकार के बाद 1992 के अधिनियम के तहत फीस के निर्धारण पर समिति द्वारा यूनिवर्सिटी खुद की फीस संरचना तैयार करने के लिए हकदार और सक्षम नहीं था। इसके बाद कोर्ट ने दो सप्ताह के भीतर सभी यूनिवर्सिटियों को फीस बैलेंस शीट दुबारा लाने के आदेश दिए।

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