प्राचीन कथाओं के अनुसार जब भी अप्सराओं में मेनका का नाम आता है, तो समाज स्त्री पर दोषारोपण करता है कि एक स्त्री ने विश्वमित्र जैसे तपस्वी की तपस्या भंग कर दी तो बाकी पुरुषों का क्या…?

आपने ऋषि विश्वामित्र के बारे में जरूर सुना होगा। वे बहुत बड़े ऋषि थे और उनकी तपस्या को मेनका नाम की एक अप्सरा ने भंग किया था। दिखने में मेनका वाकई ने बेहद खूबसूरत थीं। इस वाकये के बाद से सभी मेनका को दोषी ठहराते हैं कि उसने एक नामी तपस्वी की तपस्या भंग कर दी लेकिन क्या वाकई में इन सब में मेनका का दोष है? या ये पुरुष प्रधान समाज की मानसिकता मात्र है?


विश्वमित्र जो अनेकों वर्षो से तपस्या में लीन था। आखिर वो कैसे अपनी तपस्या को छोड़ कर वासना में आ गया? जो स्वयं को संसारिक मोह माया से परे समझता था | क्या उसकी तपस्या सच में मेनका ने भंग किया?

अगर देखा जाए तो ऋषि विश्वामित्र का खुद का अपने तन मन और वासना पर नियंत्रण नहीं रहा होगा, इसलिए एक स्त्री के छूने भर से वह अपनी तपस्या को छोड़ कर एक आम मनुष्य की तरह व्यवहार करने लगा और वासना से लिप्त हो गया।

अपना सम्मान बनाए रखने के लिए मेनका पर सारा इलज़ाम लगा दिया ताकि उनके सम्मान को कोई चोट न पंहुचा सके। आज तक सब उस बात के लिए मेनका को कोसते हैं और भला बुरा कहते हैं।

राम जो मर्यादापुरुषोत्तम के नाम से जाने जाते हैं, उनको भी एक स्त्री ने पाने की हसरत की थी लेकिन राम का मन और तन अपने बस में था इसलिए वो स्त्री अपने इरादों में कामयाब नहीं हो सकी।

लेकिन विश्वामित्र ने अपने आपको दोषी ना मान कर पूरा दोष मेनका के माथे घड़ दिया। पुरुष प्रधान समाज से विश्वामित्र को दोषी नहीं ठहराया। इससे पता चलता है कि सदियों से पुरुष प्रधान समाज है और वो आज भी बरक़रार है।

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